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भारतीय सेना में गोल्ड मेडल हासिल करने वाली प्रथम महिला

भारतीय सेना में गोल्ड मेडल हासिल करने वाली प्रथम महिला



भारतीय सेना में गोल्ड मेडल हासिल करने वाली प्रथम महिला अंजना सिंह भदौरिया------

अंजना सिंह भदौरिया

        अंजना सिंह भदौरिया

            आजकल देश में चहुंओरबेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान की चर्चा है. पिछले दिनों गणतंत्र दिवस की परेड में पहली बार तीनों सेनाओं की नारी शक्ति का दबदबा रहा. लेकिन क्या आप जानते हैं कि सेना में स्वर्ण पदक पानेवाली सबसे पहली महिला कौन थी? आइए जानें सेना की पहली बैच की अफसर अंजना भदौरिया और उन चुनौतियों को, जिनसे पार पाकर उन्होंने यह शानदार उपलब्धि हासिल की. और बीते दो दशकों में महिलाओं के लिए कितनी बदली है सेना!
बात सन 1992 की है, जब माइक्रोबायोलॉजी में मास्टर्स की डिग्री लेने के बाद अंजना भदौरिया चंडीगढ़ स्थित एक फार्मास्यूटिकल कंपनी में काम कर रही थीं. उन्हीं दिनों सेना में पहली बार महिला अफसरों की बहाली के लिए वीमेन स्पेशल एंट्री स्कीम का विज्ञापन निकला. इस विज्ञापन पर अंजना की भी नजर गयी और उन्होंने इसके लिए आवेदन कर दिया. अंजना की खुशकिस्मती थी कि वह भारतीय थल सेना के महिला कैडेटों के पहले बैच के लिए चुन भी ली गयीं. सेना के लिए उन्होंने 10 सालों तक काम किया. इस दौरान उनका सर्विस नंबर 00001 रहा और उन्हें सेना का स्वर्ण पदक पानेवाली पहली महिला होने का गौरव भी प्राप्त हुआ.
वायु सेना के एक अफसर की बेटी रही अंजना बताती हैं कि उनके परिवार में हमेशा से सैन्य सेवा को बड़े आदर से देखा जाता था. लेकिन पिता के गुजर जाने के बाद पूरे परिवार का दारोमदार अंजना के बड़े भाई पर चुका था. और इसी बीच अंजना ने सेना में भर्ती के लिए आवेदन दिया. अंजना बताती हैं, इंटरव्यू के बाद जब कॉल लेटर मिला, तो मेरे बड़े भाई ने सेना में जाने से साफ मना कर दिया. उन्हें इस बात की चिंता थी कि ट्रेनिंग के लिए चंडीगढ़ से चेन्नई जाना पड़ेगा, वह भी अकेले. इस दौरान मेरे साथ अगर कुछ गलत हो जाता, तो नाते-रिश्तेदारों के बीच उन्हें शर्मिदा होना पड़ता. अंजना बताती हैं, लेकिन मैं अपनी मां को अपने पाले में करने में कामयाब रही और उन्होंने भाई को समझाया.
तब जाकर सब तैयार हुए और मैं ट्रेनिंग के लिए निकल पड़ी. अंजना कहती हैं, उस दौरान मुझको लेकर हमारे रिश्तेदार भी तरह-तरह की बातें किया करते थे, लेकिन जब मैंने अपने बैच में टॉप किया और गोल्ड मेडल मिला तो उनके मुंह बंद हो गये. तब सबको मुझ पर गर्व होने लगा.
कैडेट अंडर ऑफिसर अंजना बताती हैं कि पहले सेना में महिलाओं की सेवा मेडिकल कॉर्प्स, डेंटल कॉर्प्स और नर्सिग सर्विस तक ही सीमित थी. 25 महिला कैडेटों का हमारा पहला ऐसा बैच था जिसे सेना में सीधे प्रायोगिक तौर पर शामिल किया गया. अंजना कहती हैं, सेना के अधिकारियों को हमारी क्षमता का अंदाजा नहीं था. राइफल ड्रिल के दौरान जहां पुरुषों को भारी 7.62 एमएम राइफल लेकर मैदान के दो चक्कर लगाने होते थे, वहीं हम सब को लाठियां पकड़ायी गयीं. अधिकारियों को संदेह था कि हमसे उतना भार उठ पायेगा भी या नहीं. अंजना कहती हैं, हमने राइफल की जगह लाठी लेकर दौड़ लगाने से इनकार कर दिया. लेकिन सही मापदंडों के अनुसार ट्रेनिंग पूरी करना भी किसी चुनौती से कम नहीं था.
हालांकि ट्रेनिंग पूरी करने के बाद हमने और हमारे बाद वाले बैच ने जो फीडबैक दिया, उससे हमारे अधिकारियों को यह बात अच्छी तरह से समझ में गयी कि हम लड़कियां भी लड़कों के बराबर मेहनत कर सकती हैं. सेना में महिला कैडेटों की क्षमता की सराहना करते हुए अंजना कहती हैं, हाल ही में महिला और पुरुष कैडेट्स को एक ही कोर्स की ट्रेनिंग में विलय कर दिया गया. हालांकि दोनों के शारीरिक मापदंडों में थोड़ा-बहुत अंतर है, लेकिन महिला और पुरुष कैडेट्स के पहले संयुक्त बैच में गोल्ड मेडल पानेवाली भी एक महिला ही थी.
एक साक्षात्कार में अंजना कहती हैं, ‘ट्रेनिंग शुरू होती है तो हमें ज्य़ादा जानकारी नहीं होती। जैसे, भारी-भरकम राइफल को संभालना एक बडा काम होता है, लेकिन धीरे-धीरे सब आसान लगने लगता है। शारीरिक स्तर पर स्त्री-पुरुष के बीच फर्क होता है, मगर जब स्त्री-पुरुष का पहला कंबाइंड बैच आया तो मैंने इसमें टॉप किया और मुझे, यानी एक स्त्री को ही गोल्ड मेडल मिला। यह बडा परिवर्तन है कि स्त्रियां सैन्य सेवाओं में रही हैं।
बहरहाल, अंजना की पहली पोस्टिंग कोलकाता में हुई. तब बहुत सारे लोगों को यह पता नहीं था कि अब सेना में महिलाओं की बहाली होने लगी है, खासतौर से जवानों और रंगरूटों को. अंजना बताती हैं कि हमें अफसर की भूमिका मिली थी और हमारी ड्रेस पैंट-शर्ट थी, जबकि मेडिकल कॉर्प में महिलाओं को साड़ी पहनना होता था. ऐसे में जवान जब मुझको देखते तो वे अचरज के मारे हमें सलामी देना भूल जाते. हम 25 महिला कैडेट्स को अलग-अलग जगह पर पोस्टिंग दी गयी. यानी हर आर्मी स्टेशन पर एकमात्र महिला अधिकारी. बाद वाले बैचेज से एक स्टेशन पर कम से कम दो महिला अफसरों की नियुक्ति की जाने लगी. ऐसे में शुरू में तो मुश्किल हुई, पर धीरे-धीरे सब सामान्य होता गया.
इनफैंट्री और लड़ाकू टुकड़ियों में महिलाओं को शामिल किये जाने के बारे में अंजना बताती हैं कि इस मामले में मानसिक तनाव और सुरक्षा अहम मुद्दा है. इनफैंट्री के लिए महिलाओं को इसलिए उपयुक्त नहीं समझा जाता, क्योंकि इसके लिए असाधारण और कड़ी मेहनत की जरूरत पड़ती है. बहरहाल, आनेवाले दिनों में महिलाओं को बटालियनों में शामिल किया भी जा सकता है, लेकिन इसके लिए सबसे पहले उनके लिए सुरक्षा इंतजामों पर भी काम करना जरूरी होगा. सेना में जाने की इच्छा रखनेवाली महिलाओं को अंजना का संदेश है कि यह हर लिहाज से महिलाओं के लिए सुरक्षित है. आपको रहने से लेकर, खाने-पीने की सुविधा मिल जाती है और काम-काज की जगह तो सुरक्षित है ही. ऐसे में सैन्यकर्मी महिलाएं सुरक्षा से जुड़े कई ऐसे पहलुओं के प्रति बेपरवाह रह सकती हैं, जिनसे आमतौर पर आम महिलाओं को दो-चार होना पड़ता है.
समस्त मातृशक्ति और क्षत्रिय समाज के लिए प्रेरणास्रोत अंजना भदौरिया पर पुरे राजपूत समाज को गर्व है।
जय राजपूताना।

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