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 झाला वंश के गोत्र-प्रवरादि

झाला वंश के गोत्र-प्रवरादि

राजपूत वंश के गोत्र प्रवरादि आदि के बारे में सामन्य जानकारी।
राजपूत वंशो के गोत्र प्रवरादि
राजपूत वंश के गोत्र, शाखा, कुलदेविया

Jhala Rajput
Jhala Rajput

         झाला वंश के गोत्र-प्रवरादि
 
वंश                         सूर्य वंश
गोत्र                         मार्कण्डेय
शाखा                       मध्यनी
कुल                         मकवान(मकवाणा)
पर्व तीन                   अश्व, धमल, नील
कुलदेवी         दुर्गा,मरमरा देवी,शक्तिमाता
इष्टदेव                    छत्रभुज महादेव
भेरव                      केवडीया
कुलगोर                  मशीलीया राव
शाखाए                   झाला,राणा

4 टिप्‍पणियां

  1. *चंद्रवंशी (पुरुवंशी) रवानी राजवंश का इतिहास ======*

    *======रवानी बाबूआन (राजपूत) क्षत्रियों का इतिहास========*

    रवानी राजवंश मगध (बिहार) पर शासन करने वाला प्रथम एवं प्राचीनतम राजवंश है। रवानी राजवंश की उत्पत्ति चंद्रवंशी क्षत्रिय वंश से है, व इनकी वंश श्रंखला पुरुकुल की है। रवानी राजपूतो का एक आदर्श वाक्य है *"रमण खानी खंडार"* जिसका अर्थ होता है *" मूल स्थान छोड़ कर रवाना हुए अलग - अलग स्थानों पर खंडित हुए और जहाँ - जहाँ खंडित हुए खड़क (तलवार) के दम पर वहीं राज किया।"* सबसे पहले यह कुल पुरुवंश कहलाया, फिर भरतवंश, फिर कुरुवंश, फिर बृहद्रथवंश कालांतर में इसी वंश को रवानी क्षत्रिय बोला जाता है। परंतु यह वही प्राचीन कुल पुरुकुल है, जो चंद्रवंशी राजा पूरू से चला एवं प्रथम कुल कहलाया। राजा पुरू के भाई यदु से यदुकुल चाला, जिसमें श्रीकृष्ण एवं उनके वंशज जडेजा, जादौन, भाटी, चुंडासमा राजपूत हुए। *रवानी* शब्द के बारे मे कहा जाता है कि जब शूद्र शासक धनानंद मगध के समस्त क्षत्रियों का नाश करने लगा, उसी के अत्याचारों से अलग - अलग जगहों पर चले जाने के कारण इन्होंने अपनी पहचान *"रवानी"* बताई चुकी *"रवानी कभी रुकते नहीं"* इसीलिए इन्होंने ये शब्द अपने लिए उपयुक्त समझा एवं रवानी राजपूत कहलाए।

    *===चंदेल (रवानी) की उत्पत्ति===*

    नंद के अत्याचार से रवाना हुए, कुछ रवानी राजपूत बुंदेलखंड आकर बसे उनमे एक रवानी राजपूत राजा नन्नुक (चंद्रवर्मन) प्रतिहार राजाओं के शासन में सामंत थे। समय बीतने के साथ प्रतिहारो का शासन कमजोर पड़ा और नन्नुक ने अपना स्वतंत्र शासन घोषित किया। एवं 8वीं से 12वी सदी तक एक प्रबल राजवंश कहलाया। आज भी चम्बल घाटी एवं बुंदेलखंड में यह साक्ष्य मौजूद है, कि किस प्रकार रवानी राजपूत राजा नन्नुक मगध से बुंदेलखंड आए और चंदेल रवानी राजपूत नाम से शासन किया जो कालांतर में आते- आते चंदेल राजपूत ही रहा गया।

    कुछ रवानी राजपूत उत्तर प्रदेश में शासन कर के कलहंस राजपूत नाम से प्रसिद्ध हुए।

    यहा क्षत्रिय राजपूत विभिन्न जगहों पर अलग-अलग नामो से जाने जाते हैं। :-
    *बिहार में कुरुवंशी राजपूत /रवानी या रमानी राजपूत, उप्र में ठाकुर राजपूत/कलहंस राजपूत, मप्र में चंदेल राजपूत /पुरुवंशी राजपूत, राजस्थान में रमानी राजपूत /रावत राजपूत, बंगाल में चंद्रवंशी राजपूत कहलाते हैं।*
    कुछ रवानी राजपूत राजस्थान के रवणा राजपूत मे भी मिल गएे।

    *=====कुल गोत्र इत्यादि=====*

    *1. गोत्र - भारद्वाज, चन्द्रायण*
    *2. वंश - चंद्रवंश*
    *3. कुल - रवानी (पुरुवंशी, कुरुवंशी, वृहद्रथवंशी)*
    *4. कुलदेवी - जरा माता (माँ पार्वती)*
    *5. कुलदेवता- महादेव*
    *6. प्रवर - अंगीरस, वशिष्ठ, बृहस्पति*
    *7. शाखा - माध्यान्दनीय*
    *8. सूत्र - कात्यायन (गृह)*
    *9. शिखा - वास*
    *10. पाद- वाम*
    *11. गुरु - बृहस्पति*
    *12. शस्त्र - गदा, तलवार, धनुष*
    *13. वेद - यजुर्वेद*
    *14. उपवेद - धनुर्वेद*
    *15. धर्म - सनातन (हिंदू)*
    *16. वर्ण - क्षत्रिय*
    *17. जाती - क्षत्रिय राजपूत*

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  2. *=====रवानी राजपूतों की वंशावली व संछिप्त इतिहास=====*

    1. राजा चंद्र (त्रेता युग के तीसरे चरण में पृथ्वी पर कोई अच्छे राजा न होने से *इंद्र की सूचना से चंद्र ने अवतार लिया जिससे चंद्रवंश चला।* )

    2. बुद्ध (चंद्र के बृहस्पति कन्या तारा की कोख से जन्म लिया, *बुद्ध ने श्राध्ददेव मुनि की बेटी इला विवाह कर पुरुरवा नामक पराक्रमी पुत्र को जन्म दिया* )

    3. पुरुरवा (इनकी राजधानी प्रयाग थी इनके गुणगान एक बार नारद जी ने इन्द्र सभा में कहे जिसको सुनकर *उर्वशी ने पृथ्वी पर आकर इनसे शादी की,* जिससे आयु, सत्यायु, राय, विजय, वगैरह 7 पुत्र हुए।)

    4. आयु ( *वीर प्रतापी राजा*)

    5. नहुष (इन्होने 100 बार अश्वमेघ यज्ञ किया था। इन्होने स्वर्ग पर विजय पाई। *इनके बारे में कहा जाता है कि इन्ही की डोली उठाने वाले सप्त ऋषियों के वंशज आज कहार कहलाते हैं।* )

    6. ययाति ( *इनकी पत्नी शर्मिष्ठा से 3 पुत्र उत्पन हुए जिसमे से पुरू से आगे वंश चला* । ययाति की दूसरी पत्नी देवयानी के पुत्र यदु से वंश चला जिसमे श्रीकृष्ण हुए।)

    7. पुरु (इन राजा के कुल में *जो राजा हुए वो पुरुवंशी कहलाए* ।)

    8. जनमेजय
    9. प्राचीन्वान
    10. प्रवीर
    11. मन्यु
    12. अरुपद
    13. सुदवत
    14. बहुचाव
    15. संपत्ति
    16. अहोगयाति
    17. रोद्रख
    18. ऋतेयु
    19. हन्तिनार
    20. तंसु
    21. भृत्य
    22. सुरोध
    23. दुष्यंत
    24. भरत ( *इन्ही से इस देश का नाम भारत पड़ा* ।)
    25. वितत
    26. अभिमन्यु
    27. वृहतक्षेत्र
    28. सुहोत्र
    29. हस्ती( *इन्होंने हस्तिनापुर की स्थापना की* )
    30. अजमीढ
    31. ऋक्ष
    32. संवरण
    33. कुरु ( *इन्होने कुरुक्षेत्र की स्थापना की* )
    34. सुधनु
    35. सुहोत्र
    36. च्यवन
    37. कृतक
    38. उपरीचर वसु
    39. बृहद्रथ

    40. जरासंध (पुरुवंश के सबसे शक्तिशाली चक्रवर्ती क्षत्रिय राजपूत सम्राट जिन्होंने पातालपुरी (अमेरिका) के राजा उपाच्य को हरा कर वहाँ तक राज स्थापित किया। एवं क्षत्रिय समाज का लोहा पूरे विश्व में मनवाया। *जरासंध को वायु पुराण, हरिवंश पुराण एवं अन्य कई पुराणों में जरासंधेश्वर महाराज, आदि नमो से देवता एवं अवतारी पुरुष बताया गया है।* परंतु क्षत्रियों के इतिहास को मिटने वाले तत्वों ने इन्हें बदनाम किया। परंतु 18 पुराणों में, महाभारत, भागवत, गीता एवं किसी भी ग्रंथ में इनके बारे मे बुरा नहीं लिखा हुआ है।

    41. सहदेव
    42. सोमापी
    43. श्रुतश्रवा
    44. आयुतायु
    45. निरामित्र
    46. सुनेत्र
    47. वृहत्कर्मा
    48. सेनजीत
    49. ऋतुंजय
    50. विपत्र
    51. मुचि सुचि
    52. क्षमय
    53. सुवत
    54. धर्म
    53. सुश्रवा
    54. दृढ़सेन
    55. सुमित
    56. सुबल
    57. सुनीत
    58. सत्यजीत
    60. विश्वजीत
    61. रिपुंजय
    62. समरंजय

    इनके बाद मगध पर शासन समाप्त होता है। परंतु यह क्षत्रिय राजपूत चंदेल राजपूत के रूप में, तथा कुछ रवानी राजपूत के ही रूप में पुन: वापस आकर मगध के विभिन्न क्षेत्रों में शासन स्थापित किया। आज भी इस वंश के राजा नेपाल, बिहार, बंगाल, उत्तरप्रदेश, बुंदेलखंड आदि क्षेत्रों में निवास करते है।

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  3. *===नेपाल में रवानी राजपूत राजा का शासन काल===*

    *काठमांडू के रवानी शासक*
    1. अरी देव सिंह सन् 1201 से 1216 तक
    2. अभय सिंह सन् 1216 से 1235 तक
    3. राणासूर सिंह सन् 1216 मे
    4. जयदेव सिंह सन् 1235 से 1235 तक
    5. जयभीम सिंह सन् 1258 से 1271 तक
    6. जयसिम्हा सिंह सन् 1271 से 1274 तक
    7. अनंत सिंह सन् 1274 से 1310 तक
    8. जयानंद देव सिंह सन् 1310 से 1320 तक
    9. जयरी सिंह सन् 1320 से 1344 तक
    10. जयरुद्र सिंह सन् 1320 से 1326 तक
    11. जयराजा देव सिंह सन् 1347 से 1361 तक
    12. जयअर्जुन सिंह सन् 1361 से 1382 तक
    13. जयस्ठी सिंह सन् 1382 से 1395 तक
    14. जयज्योर्ति सिंह सन् 1395 से 1428 तक
    15. जयकिर्ति सिंह सन् 1395 से 1403 तक
    16. जयधर्म सिंह सन् 1395 से 1408 तक
    17. जययक्ष्या सिंह सन् 1428 से 1482 तक

    *कांतिपुर के रवानी शासक*
    1.रत्न सिंह सन् 1482 से 1520 तक
    2. सुर्य सिंह सन् 1520 से 1530 तक
    3. अभारा सिंह सन् 1530 से 1538 तक
    4. नरेन्द्र सिंह सन् 1538 से 1560 तक
    5. महेंद्र सिंह सन् 1560 से 1574 तक
    6. सदाशिव सिंह सन् 1574 से 1583
    7. शिवा सिम्हा सन् 1583 से 1620
    8. लक्ष्मी नर सिंह सन् 1620 से 1641
    9. प्रताप सिंह सन् 1641 से 1674
    10. चक्रवरतेन्र्द सिंह सन् 1669 में
    11. महीपतेन्र्द सिंह सन् 1670 में
    12. जयनृपेन्र्द सिंह सन् 1674 से 1680 तक
    13. पथीवेन्र्द सिंह सन् 1680 से 1687 तक
    14. भूपलेन्र्द सिंह सन् 1687 से 1700 तक
    15. भास्कर सिंह सन् 1700 से 1714 तक
    16. महेंद्र सिम्हा सन् 1714 से 1722
    17. जगज्जाय सिंह सन् 1722 से 1736 तक
    18. जयप्रकाश सिंह सन् 1736 से 1746 एवं 1750 से 1768
    19. ज्योतिप्रकाश सिंह सन् 1746 से 1750

    *ललितपुर के रवानी शासक*
    1. पुरंदर नरसिंह सन् 1580 से 1600 तक
    2. हरिहर सिम्हा सन् 1600 से 1609
    3. सिद्ध नरसिम्हा सन् 1620 से 1661
    4. श्रीनिवास सिंह सन् 1661 से 1685
    5. योग नरेंद्र सिंह सन् 1685 से 1705
    6. लोकप्रकाश सिंह सन् 1705 से 1706 तक
    7. इंद्र जाल पुरंदर सिंह सन् 1706 से 1709 तक
    8. वीरा नरसिम्हा सिंह सन् 1709 में
    9. वीरा महेंद्र सिंह सन् 1709 से 1715 तक
    10. रिद्धि नरसिम्हा सिंह सन् 1715 से 1717
    11. महेंद्र नरसिहं सन् 1717 से 1722 तक
    12. योग प्रकाश सिंह सन् 1722 से 1729 तक
    13. विष्णु सिंह सन् 1729 से 1745 तक
    14. राज्य प्रकाश सिंह सन् 1745 से 1758 तक
    15. विश्वजीत सिंह सन् 1758 से 1760 तक
    16. जय प्रकाश सिंह सन् 1760 से 1761 एवं 1763 से 1764 तक
    17. मर्दनशाह सिंह सन् 1764 से 1765 तक

    *भक्तापुर के रवानी शासक*

    1. राया सिंह सन् 1482 से 1519 तक
    2. प्राण सिंह सन् 1519 से 1547 तक
    3. विशवा सिंह सन् 1547 से 1560 तक
    4. त्रिलोक सिंह सन् 1560 से 1613 तक
    5. जगज्योति सिंह सन् 1613 से 1637 तक
    6. नरेशा सिंह सन् 1637 से 1644 तक
    7. जगत प्रकाश सिंह सन् 1644 से 1673 तक
    8. जीतमित्रा सिंह सन् 1673 से 1696
    9. भूपतिन्र्द सिंह सन् 1696 से 1722 तक
    10. रणजीत सिंह सन् 1722 से 1769 तक

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  4. *===बंगाल में रवानी राजपूत राजाओं का शासन काल===*

    1. रघुनाथ सिंह सन् 694, 16 वर्ष
    2. जय सिंह सन् 710, 10 वर्ष
    3. बेनू सिंह सन् 720, 13 वर्ष
    4. कीनू सिंह सन् 733, 9 वर्ष
    5. इंद्र सिंह सन् 742 तक 15 वर्ष
    6. कानू सिंह सन् 757, 07 वर्ष
    7. झाऊ सिंह सन् 764, 11 वर्ष
    8. शूर सिंह सन् 775, 20 वर्ष
    9. कनक सिंह सन् 795, 12 वर्ष
    10. कंदरपा सिंह सन् 807, 21 वर्ष
    11. सनातन सिंह सन् 828, 13 वर्ष
    12. खरगा सिंह सन् 841, 21 वर्ष
    13. दुर्जन सिंह सन् 862, 44 वर्ष
    14. यादव सिंह सन् 906, 13 वर्ष
    15. जगन्नाथ सिंह सन् 919, 12 वर्ष
    16. बिरात सिंह सन् 931, 15 वर्ष
    17. महादेव सिंह सन् 946, 31 वर्ष
    18. दुर्गा दास सिंह सन् 977, 17 वर्ष
    19. जगत सिंह सन् 994, 13 वर्ष
    20. अनंत सिंह सन् 1007, 08 वर्ष
    21. रूप सिंह सन् 1015, 14 वर्ष
    22. सुन्दर सिंह सन् 1029, 24 वर्ष
    23. कुमुद सिंह सन् 1053, 21 वर्ष
    24. कृष्णा सिंह सन् 1074, 10 वर्ष
    25. रूप द्वितीय (झाप) सन् 1084, 13 वर्ष
    26. प्रकाश सिंह सन् 1097, 5 वर्ष
    27. प्रताप सिंह सन् 1102, 11 वर्ष
    28. सिंदूर सिंह सन् 1113, 16 वर्ष
    29. सूखोमोय सिंह सन् 1129, 13 वर्ष
    30. बनामाली सिंह सन् 1142, 14 वर्ष
    31. यदु सिंह सन् 1156, 11 वर्ष
    32. जीवन सिंह सन् 1167, 13 वर्ष
    33. बराम क्षेत्र सिंह सन् 1185, 24 वर्ष
    34. गोविंद सिंह सन् 1209, 31 वर्ष
    35. भीम सिंह सन् 1240, 23 वर्ष
    36. कतर (खट्टर) सिंह सन् 1263, 32 वर्ष
    37. पृथ्वी सिंह सन् 1295, 24 वर्ष
    38. तप सिंह सन् 1319, 15 वर्ष
    39. दीनबंधु सिंह सन् 1334, 11 वर्ष
    40. किनू (द्वितीय) सन् 1345, 13 वर्ष
    41. शूर सिंह सन् 1358, 12 वर्ष
    42. शिव सिंह सन् 1370, 37 वर्ष
    43. मदन सिंह सन् 1407, 13 वर्ष
    44. दुर्जन सिंह (द्वितीय) सन् 1420, 17 वर्ष
    45. उदय सिंह सन् 1437, 23 वर्ष
    46. चंद्र सिंह सन् 1460, 41 वर्ष
    47. वीर सिंह सन् 1501, 33 वर्ष
    48. धारी सिंह सन् 1554, 11 वर्ष
    49. हमबिर सिंह देव सिंह सन् 1565, 55 वर्ष
    50. धारी हमबीर सिंह देव सन् 1620, 06 वर्ष
    51. रघुनाथ सिंह देव सन् 1626, 30 वर्ष
    52. बीर सिंह देव सन् 1656, 26 वर्ष
    53. दुर्जन सिंह देव सन् 1682, 20 वर्ष
    54. रघुनाथ सिंह देव (द्वितीय) सन् 1702, 10 वर्ष
    55. गोपाल सिंह देव सन् 1712, 36 वर्ष
    56. चेतन्य सिंह देव (द्वितीय) सन् 1748, 53 वर्ष
    57. माधव सिंह देव सन् 1801, 08 वर्ष
    58. गोपाल सिंह देव (द्वितीय) सन् 1809, 67 वर्ष
    59. रामकृष्ण सिंह देव सन् 1876, 09 वर्ष
    ध्वहजा मोनी देवी सन् 1885, 04 वर्ष
    60. नीलमणि सिंह देव सन् 1889, 14 वर्ष
    कोई राजा नहीं सन् 1903, 14 वर्ष
    61. कलिपाड़़ा सिंह ठाकुर सन् 1930 - 83, 53 वर्ष

    रवानीयों ने चंदेल राजपूत के रूप में एक प्रबल राज स्थापित किया। एवं अन्य कई राजाओ ने उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड आदि क्षेत्रों पर शासन किया।

    *गढ़वाल के शक्तिशाली 52 गढ़ो में एक रवानी राजपूतो का गढ़ रवाण गढ़ भी है।*

    Rawani rajput ka bhi ithas daliye dadbahi

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