Headlines
Loading...
rajputana logo


एक प्रण अगर खुन खोले रजपूती जागे तो प्रण करना

राजकुल पत्रिका के जून के अंक में प्रकाशित
आज कुँवर अवधेश अंगार लिखेगा दिल थामकर पढना, अगर खुन खोले रजपूती जागे तो प्रण करना । ना दहेज लेना ना मृत्युभोज में जाना ।।
क्या शाही दावते खत्म हो गई जो तू मृत्युभोज खाने चला, क्या ब्राह्मण व शुद्र कम पङ गये जो यह कृत्य राजपूत करने चला । क्या आज दानवीर भिखारी बन गया जो दहेज मांगने चला, क्या आज तेरी क्षत्रियता मर गई जो स्वाभीमान बेचने चला ।।
तुझे भी तो भगवान ने देवी समान बहन या भुआ दी होगी, तेरे पिता ने भी तो उसकी शादी कर्ज लेकर ही की होगी । तो फिर क्यों तू एक और राजपूत परिवार को कर्ज तले दबाने चला ।।
धिक्कार है तेरे राजपूत होने पर ! धिक्कार है तेरे क्षत्रिय कहलाने पर ! जो तू देवी समान राजपूत कन्या कि बजाय, उसके पिता से मिलने वाली दहेज की राशि से विवाह करने चला ।।
यदि अब भी तूने प्रण ना किया, तो धिक्कार है उस क्षत्राणी को जिसने तुझे जन्म दिया ।।
written by कुँवर अवधेश शेखावत (धमोरा)
नोट:- यहाँ ब्राह्मण व शुद्र शब्द से आशय किसी जाती विशेष से नहीं है । यहां पर्युक्त ब्राह्मण शब्द का आशय एक उस पवित्र वर्ग से है जिन्हें भोजन कराना हिन्दू धर्म में पुण्य का कार्य माना जाता है व शुद्र शब्द से आशय उन लोगों से हैं जिनकी प्राथमिक आवश्यकताएं (रोटी,कपड़ा,मकान) भी पूर्ण नहीं हो पाती है ।।


हम गरम खून के उबाल हैं


राजपूतों की ऐसी कहानी है , कि राजपूत ही राजपूत कि निशानी हैl हम जब आये तो तुमको एहसास था , कि कोई एक शेर मेरे पास था ll हम गरम खून के उबाल हैं प्यासी नदियों की चाल हैं , l हमारी गर्जना विन्ध्य पर्वतों से टकराती है और हिमालय की चोटी तक जाती है ll हम थक कर बैठेने वाले रड बांकुर नहीं ठाकुर हैं .... l गर्व है हमें जिस माँ के पूत हैं , जीतो क्यूंकि हम राजपूत हैं ll हम मृतयु वरन करने वाले जब जब हथियार उठाते हैं l तब पानी से नहीं शोनीत से अपनी प्यास बुझाते हैं ll हम राजपूत वीरो का जब सोया अभिमान जगता हैं l तब महाकाल भी चरणों पे प्राणों की भीख मांगता हैं ll

पापो का भार


पापो का भार । क्षत्रियो ने उठाई है तलवार। रावण का जब बढ गया था अँहकार। तो राम ने लिया था क्षत्रिय कुल मेँ अवतार। जब बहूत मारा था लोगो को पापी कँस ने। तो लिया था अवतार कृष्ण ने भी क्षत्रिय वँश मेँ॥ परमात्मा ने हमेँ भी क्षत्रिय कुल मेँ जन्म दिया हैँ। पर हमने तो क्षत्रिय सँस्कारो को ही खत्म कर दिया है॥ क्षत्रिय महान क्षात्र धर्म से बनते थेँ। पर वो हमारे जैसे आपस मेँ नहीँ तनते थे॥ हमने तो दिया है उस क्षात्र धर्म को ही अब छोङ। कुल मर्यादा और कर्त्तव्य से ही लिया अपना मुख मोङ॥ अब तो हमेँ क्षात्र धर्म की राह पे चलना होगा। बहूत डगमगा गये कदम

॥जय क्षत्रिय ॥जय जय क्षात्र धर्म

0 Comments:

It is our hope that by providing a stage for cultural, social, and professional interaction, we will help bridge a perceived gap between our native land and our new homelands. We also hope that this interaction within the community will allow us to come together as a group, and subsequently, contribute positively to the world around us.