दहिया राजपूत वंश की कुलदेवी कैवाय माता
दहिया वंश और दहियावटी का इतिहास
दहिया राजपूत वंश की कुलदेवी कैवाय माता
दहिया राजपूत वंश की कुलदेवी कैवाय माता |
कैवाय माता का मंदिर -
परबतसर स्थित किनसरिया का
प्राचीन नाम सिणहडिये था ।
कैवाय माता का
मंदिर
नागौर जिले के
परबतसर तहसील 6 किमी की दुरी
पर स्थित है
। लगभग 1007 वर्ष
पूर्व आर्थात विक्रम संवत
1056 (999 ई .) में दहिया वंश के
परबतसर के वीर
पराक्रमी योद्धा राणा चच्चदेव दहिया दारा निर्मित
देवालय में कैवाय
माता की मूर्ति
विधमान है। मनोहरी पर्वतीय अंचल की
उंची चोटी पर
स्थित कैवाय माता का
मंदिर युगों-युगों
से श्रदालु भक्तों की मनोकामना
पूर्ण
करता रहा है,जो भी
भक्त ह्रदय से
माता के दर्शन की आकांक्षा
रखता है। मंदिर
स्थापना के 713 वर्ष पश्चात
जोधपुर के महाराजा अजीतसिंह
दारा माँ भवानी
की मूर्ति पर्तिष्ठापित की गई,जो
वाम पार्श्व में
अवस्थित है
महाराजा अजीतसिंह,जोधपुर के
संदर्भ में लोक मान्यता है की
जब कैवाय माता
को इत्र
का अपर्ण करने के
लिए महाराजा अजीतसिंह ने अपने आदमियों
को किनसरिया भेजा,तो वे
सांयकाल के समय
वहां पहुचे, तब
उस मंदिर का पुजारी मंदिर से
निचे उतर चुका
था। जब
उसे वह इत्र
दिया गया,तो
उसने इत्र को
अपने सिर में लगाकर
यह कहकर
पुन:लौटो दिया
की उसे देवी
को अर्पित कर दिया गया है।
जब जनता ने
इस हरकत
की शिकायत महाराज से
की,तब वे
स्वंम किनसरिये पहुंचे। जब महाराज
ने पुजारी से
बात की तो
पुजारी ने कहा
की मेने तो उदारमन से यही
कहा कि इत्र
माँ को अर्पित
किया है। महाराजा अजीतसिंह ने इस
बात जाँच करने
के
बाद गलत सूचना
देने वाले का
सिर कलम करवाने का आदेश
दिया,तो पुजारी
ने
कहा कि यह
सजा मत दीजिए
। इसने जैसा देखा,वैसा
कह दिया ।
हम तो माँ
के चरण
सेवक हैं। अपने
सेवक की लाज
रखना तो माँ
के हाथ में है
। मैंने तो
माँ को अर्पित
कर इत्र अपने
सिर पर लगाया
। यह सब
कैवाय माँ की कृपा
है ।माँ के
इस चमत्कार को
देख कर
महाराज अजीतसिंह ने उसी
के वाम पार्श्व
में माँ भवानी की मूर्ति
पर्तिष्ठापित की ।
कैवाय माता के
दाहिनी तरफ काल
माता व नवदुर्गा की मुर्तिया
है । प्राचीन
मान्यता के
आधार पर इन्हें
चौसठ योगिनी एवं
बावन भैरव के रूप में
भी माना जाता
है । मुख्य
मंदिर के
बाहर दो भैरव
प्रतिमाऐं जो काला
भैरव व गौरा भैरव के
नाम से प्रतिष्ठित
हैं।कैवाय
माँ के मंदिर
के ठीक दक्षिणाभिमुख
विशाल तिबारा है,जिसका
निर्माण कार्य महाराज
अजीतसिंह के समय
में हुआ था।तथा
उतर दिशा में मंदिर
जो पोल स्थित
है,उसमे
हिंगलाज माता की
प्रतिमा है । किनसरिया गाँव में
बवाल का पहाड़
है,जो कि
बबायचा कहलाता है, जो
कोस लम्बा है,बंवाल
और बायचा के
नाम से कहावत
है :
" तू क्यों डरे बंवाल
थारी पुठ बवायचो
"
दहिया राजपूत वंश के
21वें राजा दण्डमंडलीक
(देरावर) ने परबतसर
के पास देरावरगढ़
बनवाया था ।
जो आज देवडूंगरी
के नाम से
Great history of dahiya rajput
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जवाब देंहटाएंGreat history of dahiya rajput
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जवाब देंहटाएंJay dahiya rajput jay kavai mata ji
जवाब देंहटाएंJay dahiya
जवाब देंहटाएंvati
Great history of Dahiya rajput...
जवाब देंहटाएंJay,🙏 .....Dahiya vati..
जवाब देंहटाएंJay Rajputana
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