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आज एक वीर क्षत्रिय महाराजा एकलिंग दीवान राणा सांगा का बलिदान दिवस है।

आज एक वीर क्षत्रिय महाराजा एकलिंग दीवान राणा सांगा का बलिदान दिवस है।

आज एक वीर क्षत्रिय महाराजा एकलिंग दीवान राणा संग्राम सिंह मेवाड़ ( राणा सांगा) का बलिदान दिवस है।


*अस्सी घाव लगे थे तन में*
*व्यथा एक नही थी मन मे*



इस वीर का सच्चा इतिहास अगर नकली कलमकार सामने रखते तो आज बाबर नाम के कलंक, लुटेरे, हत्यारे का मुकदमा मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के खिलाफ न चल रहा होता और न ही खुद को कट्टर दिखाने के चक्कर मे कुछ भटके लोग श्रीराम के विरोधी बनते.. 


लेकिन तथाकथित इतिहासकारों ने ढोल पीटे उस बाबर के जिसने हिन्दुओ का सामूहिक नरसंहार करवा कर उनके सिरों की मीनार बनवाई जो उसको गाज़ी की पदवी मुस्लिमो के अंदर दे गई थी..


 ये बलिदान दिवस है उस महावीर का जिसने धर्म व राष्ट्र की रक्षा के लिए अंतिम सांस तक जंग लड़ी और देश एक दुर्दांत मतान्ध लुटेरे के हाथों में न चला जाय उसकी चिंता में 80 घाव लगने के बाद भी तलवार ले कर जंग जारी रखी..


राणा रायमल के बाद सन् 1509 में राणा सांगा मेवाड़ के उत्तराधिकारी बने। इनका शासनकाल 1509- 1527 तक रहा । इन्होंने दिल्ली, गुजरात, व मालवा मुगल बादशाहों के आक्रमणों से अपने राज्य की बहादुरी से ऱक्षा की। 

उस समय के वह सबसे शक्तिशाली राजा थे । इनके शासनकाल में मेवाड़ अपनी समृद्धि की सर्वोच्च ऊँचाई पर था। एक आदर्श राजा की तरह इन्होंने अपने राज्य की  रक्षा तथा उन्नति की। राणा सांगा अदम्य साहसी थे ।

 इन्होंने सुलतान मोहम्मद शासक माण्डु को युद्ध में हराने व बन्दी बनाने के बाद उन्हें उनका राज्य पुनः उदारता के साथ सौंप दिया, यह उनकी बहादुरी को दर्शाता है। 

बचपन से लगाकर मृत्यु तक इनका जीवन युद्धों में बीता।

 इतिहास में वर्णित है कि महाराणा संग्राम सिंह की तलवार का वजन 20 किलो था ।


अहमदनगर के जागीरदार निजामुल्मुल्क ईडर से भागकर अहमदनगर के किले में जाकर रहने लगा और सुल्तान के आने की प्रतीक्षा करने लगा ।

 महाराणा ने ईडर की गद्दी पर रायमल को बिठाकर अहमद नगर को जा घेरा। मुगलों ने किले के दरवाजे बंद कर लड़ाई शुरू कर दी। 

इस युद्ध में महाराणा का एक नामी सरदार डूंगरसिंह चौहान(वागड़) बुरी तरह घायल हुआ और उसके कई भाई बेटे वीरगति को प्राप्त हुए ।

 डूंगरसिंह के पुत्र कान्हसिंह ने बड़ी वीरता दिखाई। किले के लोहे के किवाड़ पर लगे तीक्ष्ण भालों के कारण जब हाथी किवाड़ तोड़ने में नाकाम रहा , तब वीर कान्हसिंह ने भालों के आगे खड़े होकर महावत को कहा कि हाथी को मेरे बदन पर झोंक दे।

 कान्हसिंह पर हाथी ने मुहरा किया जिससे उसका शरीर भालो से छिन छिन हो गया और वह उसी क्षण मर गया, परन्तु किवाड़ भी टूट गए। 

इससे मेवाड़ी  सेना में जोश बढा और वे नंगी तलवारे लेकर किले में घुस गये और मुगल  सेना को काट डाला।

 निजामुल्मुल्क जिसको मुबारिजुल्मुल्क का ख़िताब मिला था वह भी बहुत घायल हुआ और सुल्तान की सारी सेना तितर-बितर होकर अहमदाबाद को भाग गयी।

माण्डू के सुलतान महमूद के साथ वि.स्. 1576 में युद्ध हुआ जिसमें 50 हजार सेना के साथ महाराणा गागरोन के राजा की सहायता के लिए पहुँचे थे। इस युद्ध में सुलतान महमूद बुरी तरह घायल हुआ। उसे उठाकर महाराणा ने अपने तम्बू पहुँचवा कर उसके घावो का इलाज करवाया। फिर उसे तीन महीने तक चितौड़ में कैद रखा और बाद में फ़ौज खर्च लेकर एक हजार राजपूत के साथ माण्डू पहुँचा दिया। सुल्तान ने भी अधीनता के चिन्हस्वरूप महाराणा को रत्नजड़ित मुकुट तथा सोने की कमरपेटी भेंट स्वरूप दिए, जो सुल्तान हुशंग के समय से राज्यचिन्ह के रूप में वहाँ के सुल्तानों के काम आया करते थे।

 बाबर  से सामना करने से पहले भी राणा सांगा ने 18 बार बड़ी बड़ी लड़ाईयाँ दिल्ली व् मालवा के सुल्तानों के साथ लड़ी। 

एक बार वि.स्. 1576 में मालवे के सुल्तान महमूद द्वितीय को महाराणा सांगा ने युद्ध में पकड़ लिया, परन्तु बाद में बिना कुछ लिये उसे छोड़ दिया..

बाबर सम्पूर्ण भारत को रौंदना चाहता था जबकि राणा सांगा तुर्क-अफगान राज्य के खण्डहरों के अवशेष पर एक हिन्दू राज्य की स्थापना करना चाहता थे, परिणामस्वरूप दोनों सेनाओं के मध्य 17 मार्च, 1527 ई. को खानवा में युद्ध आरम्भ हुआ।

 इस युद्ध में राणा सांगा का साथ महमूद लोदी दे रहे थे। युद्ध में राणा के संयुक्त मोर्चे की खबर से बाबर के सौनिकों का मनोबल गिरने लगा। 

बाबर अपने सैनिकों के उत्साह को बढ़ाने के लिए शराब पीने और बेचने पर प्रतिबन्ध की घोषणा कर शराब के सभी पात्रों को तुड़वा कर शराब न पीने की कसम ली, उसने मुसलमानों से ‘तमगा कर’ न लेने की घोषणा की। तमगा एक प्रकार का व्यापारिक कर था जिसे राज्य द्वारा लगाया जाता था। 

इस तरह खानवा के युद्ध में भी पानीपत युद्ध की रणनीति का उपयोग करते हुए बाबर ने सांगा के विरुद्ध सफलता प्राप्त की।

 युद्ध क्षेत्र में राणा सांगा घायल हुए, पर किसी तरह अपने सहयोगियों द्वारा बचा लिए गये। 

कालान्तर में अपने किसी सामन्त द्वारा विष दिये जाने के कारण राणा सांगा की मृत्यु हो गई। 

खानवा के युद्ध को जीतने के बाद बाबर ने ‘ग़ाजी’ की उपाधि धारण की।

खानवा के युद्ध मे राणा सांगा के चेहरे पर एक तीर आकर लगा जिससे राणा मूर्छित हो गए ,परिस्थिति को समझते हुए उनके किसी विश्वास पात्र ने उन्हें मूर्छित अवस्था मे रण से दूर भिजवा दिया एवं खुद उनका मुकुट पहनकर युद्ध किया , युद्ध मे उसे भी वीरगति मिली एवं राणा की सेना भी युद्ध हार गई । 

 जब राणा को  होश आने के बाद यह बात पता चली तो वो बहुत क्रोधित हुए उन्होंने कहा मैं हारकर चित्तोड़ वापस नही जाऊंगा ,उन्होंने अपनी बची-कुची सेना को एकत्रित किया और फिर से आक्रमण करने की योजना बनाने लगे 

इसी बीच उनके किसी विश्वास पात्र ने उनके भोजन में विष मिला दिया ,जिससे उनकी मृत्यु हो गई । 

आज बलिदान की उस सर्वोच्च गाथा धर्मरक्षक राणा सांगा के बलिदान दिवस पर समस्त क्षत्रिय परिवार बारंबार नमन करता है उस महायोद्धा को और उनकी यशगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प लेता है .. 

साथ ही नकली कलमकारों से सवाल करता है कि वो बाबर के गुणगान से आज देश मे फैली विकृति कट्टरता व उन्माद की जिम्मेदारी लेंगे क्या ?।



*बाबर तेरे प्याले टूटे बता  कितने?*

*पर सरहददी का।अफ़सोस लिए फिरते हैं।*

*इतिहास की चोटो का एक दाग लिए फिरते है*

*जय संघ शक्ति*
*जय क्षात्र धर्म*

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