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सांस्कृतिक –झरोखा हड़बूजी सांखला राव जोधा के समकालीन हड़बूजी सांखला

सांस्कृतिक –झरोखा हड़बूजी सांखला राव जोधा के समकालीन हड़बूजी सांखला

सांस्कृतिक –झरोखा  हड़बूजी सांखला 
हड़बूजी सांखला
हड़बूजी सांखला


राव जोधा के समकालीन हड़बूजी सांखला एक संत पुरुष थे | वे मेहराज सांखला के पुत्र थे | नाम साम्यता के कारण इतिहासकारों ने मेहराज सांखला और मेहाजी मांगलिया को एक मान कर जबरदस्त भूल की है | मेहराज सांखला भाटी राणगदे के साथ कोडमदे वाले युद्ध प्रसंग में मारे गए थे | तब हड़बूजी अपना गाँव भूंडेल छोड़कर हरभमजाळ में आकर रहे | हरभमजाळ उनके नाम से ही प्रसिद्द हुआ स्थान है | ‘हरभम’ हड़बूजी का ही नाम है और वे जाळ ( थार का वृक्ष विशेष – इसी वृक्ष के आधिक्य के कारण ‘जालौर’ नाम का स्थान है ) के पेड़ के नीचे तपस्यारत रहे थे, इसलिए वह स्थान ‘हरभमजाळ’ कहलाया | 
हड़बूजी शकुन विचारक, दयालू, संत और योद्धा थे किन्तु उन्होंने शस्त्रों का परित्याग कर दिया था | लोक श्रुतियों के अनुसार वे बाबा रामदेव जी के मौसेरे भाई थे और उन्हीं के प्रभाव से शस्त्रों का परित्याग किया था | ‘नैणसी री ख्यात’ में इनके बारे में कई कथाएँ मिलती है | 
राव जोधाजी लोलरै गाँव में हड़बूजी से मिले थे, ऐसा लोक श्रुतियों में आता है | कुछ कथाएँ बैंहगटी गाँव में जोधा और हड़बूजी का मिलना मानती है | कुछ लोग मानते हैं कि हड़बूजी को बैंहगटी गाँव राव जोधा का दिया हुआ है | सच्च जो भी हो आज बैंहगटी गाँव हड़बूजी सांखला के नाम से ही जाना जाता है| वहीँ उनका मंदिर है | वहीँ हड़बूजी का वह गाड़ा भी है जिसमें अन्न-दाने भरकर वे उसे दीन-दुखियों को बाँटते थे | आज उस मंदिर में उस गाडे ( लकड़ी की बड़ी गाडी ) की पूजा भी होती है | हड़बूजी सांखला राजस्थान के पांच पीरों में प्रमुख हैं-
‘दूजा पीर सांखला हड़बू | नहीं किसी के आया काबू |
भूखों को भोजन पहुंचाता| उसे बांटने घर-घर जाता|| 
उनके मंदिर में वह गाडा| पूजा करने जन-जन आता|
सांखला हड़बू लोक देवता|‘दयालुता’जग आज सेवता||’ 
        जोधाजी अपनी ननिहाल ‘काहुनी’ से चलकर पहले सिरहड़ बड़ी में रुके, जहां उन्होंने मोढी मूलवाणी जी का आशीर्वाद लिया था | यह मोढी जी सिरहड़ बड़ी के तत्कालीन ठाकुर रावत भादा  जसहड़  की ठकुरानी  थी और लोकाख्यानों  के अनुसार इनमें देवत्व था |  जोधा जी इसीलिए सिरहड़ बड़ी में रुके थे | सिरहड़ बड़ी के बाद वे सांखला हड़बूजी के पास पहुंच थे | वहां वे एक रात रुके थे | हड़बूजी ने उनका मान सम्मान किया और भोजन के वक्त अपने भाणजे ‘जैसा भाटी’ को राव जोधा के साथ थाल पर भोजन के लिए बैठाया | ( यह जैसा जैसलमेर के राजा रावल केहर के एक राजकुमार कलिकरण का पुत्र था | )  वे खुद सेवा-चाकरी में लगे रहे | दूसरे दिन राव जोधा ने हड़बूजी से शकुन विचारने का कहा और पूछा कि ‘उन्हें मंडोर मिलेगा कि नहीं?’ 
 हड़बूजी ने विचार कर कहा कि उन्हें मंडोर मिलेगा| मेरी रात की गोट –गूघरी के दाने जब तक पेट में है वहां तक घोड़ा फेर लो | और हमारे खुद के लिए शकुन यह है कि इस मेरे भाणजे जैसा को साथ ले जाओ, यह आपके राज में सीरवी (भागीदारी) होगा | हम सांखला सेवा-चाकरी तक ही रहेंगे | हड़बूजी की भविष्यवाणी सही सिद्ध हुई | जोधपुर में ‘जैसा भाटी’ महत्त्वपूर्ण रहे , जिसमे भाटी गोविन्ददास का नाम इतिहास विश्रुत है |अपने बारे में की गई भविष्यवाणी भी सही है,क्योकि सांखलों की स्थिति मारवाड़ में महत्त्वपूर्ण नहीं रही | 
मारवाड़ के लोगों का  विश्वास शकुन विचारने में आज भी है | तीतर, कोचरी आदि पक्षियों की बोली और हरिण, गधा आदि पशुओं की स्थिति से लोग शुभ-अशुभ का ज्ञान कर  लेते हैं | यह लोक –  विश्वास मध्यकाल में अधिक ही रहा होगा, इसलिए राव जोधा तक वहां पहुंचे और उनका आशीर्वाद लिया था| 
उनकी करुणा और शकुन विचार की एक कथा उनकी दोहिती के जन्म से संबंधित है | हड़बूजी कहीं बाहर थे तभी उनकी गर्भवती बेटी के लड़की जन्मी | ज्योतिषियों ने उसे अशुभ बताया तो उस शिशु-बालिका को जंगल में फिंकवा दिया गया | भर लौटते समय हड़बूजी ने उस बालिका का रुदन सुना और उसे खोज कर घर ले आये | रावळे ( ठाकुर का जनाना आवास )  में जब लड़की को पहुंचाया गया तो कोहराम मच गया | सारी हकीकत जानकर उन्होंने कहा- ‘मेरी यह दोहिती राजरानी बनेगी, ऐसा मेरा शकुन कह  रहा है| मैंने तीतर को ऐसा शुभ कहते सुना है |’ और उस लड़की की शादी राव जोधा के बेटे राजकुमार सूजा (सुजान) से हुई तथा जोधपुर की तत्कालीन परिस्थितियों में सूजा के हाथों में जोधपुर का सिंहासन आया और वह लड़की लिखमी (लक्ष्मी ) राजरानी बनी | यहाँ लड़की के सम्बन्ध  में व्यक्त शकुन महत्वपूर्ण नहीं है हड़बूजी की ‘करुणा’ और नारी के प्रति बराबरी का भाव महत्वपूर्ण है | नहीं तो उस काल में उसे तो मरने के लिए फेंक ही दिया गया था |  
हड़बूजी की विशाल मूर्ति मंडोर (जोधपुर) में देवताओं की साळ (कमरा) में स्थित है | यह साळ राजा अजीतसिंह ने वि.सं.1771 में बनवाई थी |
डॉ. आईदानसिंह भाटी

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