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धाड़ेती रो "बेर" दो धाड़ेतीयों री बात हैं। एक हरी सिंह और दूजे जालणसिंह

धाड़ेती रो "बेर" दो धाड़ेतीयों री बात हैं। एक हरी सिंह और दूजे जालणसिंह

# धाड़ेती रो "बेर"
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rajputana
Rajputana state


         पुराने समय की बात है पश्चिमी राजस्थान में बारिश कम होने की वजह से बहुत ही अकाल पड़ते थे और  जीवन यापन करने के लिए विशेष तौर से पशुधन ही पाला करते थे। भेड़ बकरियां (एवड़)और गौधन बहुतायत में होता था। खाते-पीते परिवारों के पास ऊँठारू (भरग) भी होते थे। जो अब धीरे-धीरे कम हो गए हैं।
          उस समय घोड़े बहुत कम ही होते थे, और यदि होता भी था तो गाँव के ठाकुर के पास एक दो या ठाकुरों के चाकर, बेली-साथी के पास। अपवाद के रूप में कोई डकैत या धाड़ेती राखता। क्योंकि घोडों रो खर्चों टाबर पाळण सूं घणो होंतो।
   उण समय रे दो धाड़ेतीयों री बात हैं। एक हरी सिंह और दूजे जालणसिंह । दोनों ही शिकार रा शौकीन हा। आपस मे मिलियोड़ा नी। पण दोनों नोवे-सादे ओळखता। एक दिन दोनों रिन्द-रुई में आपस मे मिल गिया। अर आपस मे ओलखवणं की। अरे हरिसिंह आप ही हो जिणरो रो बखाण चारण अर ढोली करे। हरिसिंह जवाब दियो  हुकम हुंईज हो सा। 
जालणं सिंह आपरो परिचय दियो। अर अमल गलियों।दोस्ती पक्की करी।
 हरिसिंह तलवारबाजी में निपुर्ण, अर काग(कूटनीतिक) योद्धा थे।
जबकि जालणं सिंह सिखाऊ डकैत, छोटी-मोटी डकैती करता।
   जालणं सिंह क्यो के सुणो हरिसिंह जी आप हमके मोटे धाड़ें जाओ तो म्हनो साथ मो लेता जाया।
 म्हारे चारणों नो घोड़ा देवण रो कवल करियोड़ो है ओ पुरो करणो हैं। 
इतरी बंतळ कर अर आपु-आपरे घरों री पगडोंडी घोड़ा खेड़ लिया है।
कुछ समय रे बाद सावन रे महीने उत्तराद में कालायण ऊमटी,अर हरिसिंह सुगन देख,घोडों मेवाड़ रे आडे मावल री रुख मो खड़ दियो।
   मार्ग मो जालणं सिंह री याद आई, तो भेवते जालणं सिंह नो हेलो करियो।

हरिये हेलो मारियो,सुतो जालणं जाग।
अनड़ पहाड़ो उतरे,उठ लगाओ आग।।
आग लगायों धड़ पड़े, होवे नगारे घाव।
सोलह सोत शुरवां,किस विद लागे दाव।।

      हरिसिंह री बात जद जालणं री मां सुणी । अर मां जालणं नो क्यो ,अरे ओ हरियो खतरनाक डकैत है तनो लेजा मरा देहे। तू मत जा। मां री बात मोनली।
अर जालणंसिंह घर रे बाहर भी नही आये,अंदर से ही पड़उत्तर दियो। हूँ नी हालो।

माता री सेवा करों, दुधे दिराओ धार।
हरिया घोडों हाँक ले,हूँ आओ प्रभात।।

    हरिसिंह क्यो अरे कपूत बाहर तो आ। मोये बैठोड़ो की जवाब दे। अर हरिसिंह क्यो..

जालणं म्हे तनो जोणियों,उण दिन आळो यार।
थें गुजराती किरची रे कारणे, पलक नई राख्यो प्यार।।

  अरे कपूत उण दिन अपो भेळो अमल(गुजराती किरची)लियो, उण अमल रो प्रेम ही को राखियों।
   इतरो के अर हरिसिंह आपरो घोडों खेड़ लियो। मुसळ धरो पोणी बरसे । हरिसिंह रीह मो भींजे ,छोंटों रा छमिड़ बाजे।
     दिन री उगाळी हरिसिंह आनासागर रे तीर माथे जा अर घोड़ों ठोमभियो। लगोम्म ढीली छोडी। अर आप घाट माथे बैठ गिया है।
 अब पाणी री पणघट आयी है, तो हरिसिंह उण पनघट री पणिहारी सूं बात करनी शुरू की है। 
घणी लुगायां बात नी करी,पण उण में एक ज्यादा बोलकी ही उण शहर री पूरी कळकूँची सुणा दी।
   हरिसिंह बहुत ही चालाक डकैत हा उण पणिहारी रे हाथ फेर अर धरम री बहन बणा दी।
अर उणने कयो के थारे शहर में जीताई लड़ाकू पहलवान सूरमा है उण सब नो कईजे आनासागर माथे थळवत सूं हरिसिंह आयोड़ा है,अर आप अभी ने रेवण माथे बुलाया है, गोट है ।
धर्म री बहन नो पॉच रुपिया दिया,उण टेम पॉंच रुपियों रो घणों मोन हो।
बहन रा जमीन माथे पग ही नई लागे। सगळां रे घर जा अर कयो के थोने नेतो है, मारे धरम रो भाई आनासागर माथे अयोड़ो है।
सगळां जणा खुस हुआ। अर आनासागर जा पहुँचिया।
 तो कुण-कुण हा...

ओम जी,भोमजी,पहाड़सिंह,परबतसिंह,डुंगरसिंह, भाखरसिंह, अणुमल,टणुमल,टोकरमल....

सगळां पहुँच गिया।
हरिसिंह पुछियों हेंग आ गिया। कोई लारे नी  रेणो चाइजै,म्हे थोने घणे कोड सूं।
गोट देऊ सा।
 तो जवाब हो के हाँ  हुकम पगे हालतों हो वे सगलां आ गिया हो सा।
 
हरिसिंह अमल गलियों है,अर डोढी मानवरों भेवण लागी हैं।

अमल आरोड़ो,दारू गुटके,मांस बटके जाजा उड़े गुल।
आनासागर ऊपरे बोले, हरियो हुल।।

सगळा शूरवीरों ने नशे मो चूर कर दिया हैं, बेसुध हो गिया है। एक दो कोई अपंग हा, उण ने , हरिसिंह दारू नई पायो।
अपंगों ने पुछियों, थोरे शहर में घोड़ा किता है। मनों घोड़ा खरीदणा हैं। घोडों रे पीवण रो टेम हो,सगळा आनासागर माथे आया। अर अपङ्गिया बोलियां,घोड़ा हेंग आ गिया है सा।
 हरिसिंह आपरे घोड़े माथे जीण कियो अर ,घोडों ने घेर खेड़ लगाई । घोडों री "खे" मो कइं नी दिहे। पूरे शहर रा घोड़ा हरिसिंह हाँक लिया।
अर पूरे शहर मो हाको फूट गियो। हरिसिंह धाड़ेती घोड़ा ले गियो।

पुकार राजा कने पहुंची। राजा कयो, सोलह शुरवां हैं उण ने बुलाओ। जेहड़े सन्देश आयो के। ओ सगळा ही आनासागर माथे बेसुध पड़िया हैं।

   घोडों ने घोड़ा पुगे,पाळो ने पाळा।

लारे कोई भार आई को नी। 
हरीसिंह रोटी वेळा री टेम,अर घोड़ा जालणं सिंह रे ढाणी रे पागति हो अर निकळण लागा है। अर जालणं रो हाली(हलकारो) बाहर ऊभो,घोड़ा देख अर कैवण लागो।
जालणं सिंह जी ठाकुर साहब घोड़ों हो खेड़ों भरिज गियो हैं, इतरा घोड़ा जिंदगी मो नी दीठा।
जालणं हलकारे नो कयो, जा ओ हरियो हैं, उण नो कयें जालणं सिंह बुलावे।
हलकारे जा हरिसिंह नो कयो ठाकर जालणं सिंह बुलावे।
 हरियो मना कर दियो के नी आवो।
हलकारे रे जालणं नो संदेशों दियो,जालणं रे उन दिन बेटे रो नामकरण हो , रेवण ही।जालणं नो रीह आ गई।
अर घोड़े माथे जीण कर, हरिसिंह रे आडो लड़ण गियो हैं।

रातों ज घोड़ा हाँकिया मनो देवो ज आई नींद।
आडो जालणं आवियों, ज्यों तोरण आगे बींद।।

हरिसिंह कयो जालणं ठेर जा।उण मुलाकात रे कारणे दस बीस घोड़ा तनो दे दों।
 जालणं कयो के थें म्हारो अपमान कियो हैं, आधा दे नई तो नतो मार, अर पूरा लेइ ही।
हरिसिंह कयो हे...
 
धीरे रहिजो जालणंसिंह,मन मो मारे रीस।
उण गुजराती किरची रे कारणे घोड़ा दे दो दस बीस।।

जालणं कयो कुण कहे। हूँ लड़ी ही।

 इनवी ठाकर रो हूँ दिकरो,इनवी बोलों बोल।
मोंगियां घोड़ा हूँ नी लो,होवे चारण डुमो रे मोल।।

तो हरिसिंह कयो, लोंठों होवे तो ले ले।

हरिये घोड़ा हाँकिया, मोटी पड़ियो भार।
 घोडों दौङायो,थळवत मो जालणं लीणो लार।।
 
 जालणं हरिये रे आडो फिरियो है , अर लड़ाई शुरू हुई।
तो हरिसिंह कयो जालणं भा कर, तू छोटो हैं, पैली तू मन री आस पूरी कर।
  जालणं घणी बार तलवार रा घाव किया,पण हरियो लड़ाकू हतो। जालणं थक अर कयो हमे तू भा कर।
 हरिसिंह कयो एजे कई को लागो।
तू पाछो जा।
पण राजपूत नो रेकारे री गाळ हैं।
नही हरिये कयो तो तैयार हो जा.....

बीदावत कड मोड़ खाग चलाई शुरवें ।
गयी बिडफोड़,घोडों बगतर ले गयी।।

हरिसिंह के एक ही वार में जालणं और घोड़े दोंनो को दो टूक कर दिए।
 हरिसिंह घोड़े लेकर अपने गाँव चला गया। और जालणं सिंह के घर जो रेवण थी वो मातम में बदल गयी।

         समय बीता, जालणं का कुँवर बड़ा हुआ, तो वह गाँव की पणिहारियो के घड़े तीर से फोड़ देता था। कोई कुछ नही बोलता था। क्योंकि गाँव का ठाकुर था। सब तंग आ गए थे।
गाँव की ही नवी नवेली बहु थी वो भी पाणी लेने गयी,उसका भी घड़ा फोड़ दिया। उसने वापस घर आकर अपनी सास से पूछा कि यह कौन है ?सब के घड़े फोड़ देता है, और कोई जवाब भी नही देता हैं। हकीकत क्या है।
तब उसकी सास ने कहा कि लाड-प्यार में बिगाड़ कर रखा हैं, इसके बाप को हरिसिंह ने मार दिया था। तब से गाँव वाले कुछ नही कहते हैं, बड़ा होगा तो समझ जाएगा।
दूसरे दिन पणघट पर वहीं बैठा था ज्यो ही नई बीनणी का घड़ा फोड़ा, झटसे उसने कहा,पनिहारियो का घड़ा फोड़ने से तेरे बाप का बेर नही आएगा।
 इतना कहना हुआ, वह सीधा अपनी मां के पास आया और कहा कि मुझे आज पनिहारियो ने मोहा बोला है कि तेरे बाप को हमने नही मारा हैं।
बता मेरे बाप को किसने मारा में उसे मारने के बाद ही घर आऊंगा।
मां ने पूरी बात बताई। वह आग बबूला हो गया और सीधा हरिसिंह के गाँव गया।
     हरिसिंह कोटड़ी में होको गुड़गुड़ा रहे थे, इसने जाते ही पूछा हरीसिंह कुण हैं।
गाँव तो क्या चौखले में हरिसिंह का कोई नाम नही लेता था ,पास में बैठे लोग चौक गए,ये कौन आ गया हैं।
हरिसिंह ने कहा मैं हूँ।
जालणं के कुँवर ने कहा घणा दिन हुआ होको गुगुड़ावते नो  
आज हूँ ,तनो मार अर म्हारे बाप रो बेर लेइ ही।
 हरिसिंह कोंपण लाग गियो है, क्यो की उमर रे आखरी पड़ाव में हो। अर ओ कुँवर जवान ।
  पागति बैठा भला मिनख कैवण लागा, बैठ अर बात करो।
बेर भाढ देहो, शांति रखों । आप कथे परणीजीयोड़ा हो।
 कुँवर रीस में जवाब दियो के कुँवारों हूँ, बेर लेव अर पछे परणीजी ही।
 पंचों कयो अरे महोरे डावै हाथ रो खेल है, हणो बेर भाढो।
हरिसिंह रे बेटी हैं, अपनों परणा दो ओ बेर भढीयो।
 कुँवर रे थोड़ी हिंये लागी।
के बेर तो इयो इज भढे है।
 आला लीला बांस कटाया है। चंवरी रोप अर,हरिसिंह आपरी बाई कुँवर ने परणा दी।
दूजे दिन कुँवर घरे आयो,मां मन में खुस ही के एक ही बेटो है, थोड़ो राधोड़ो है। ज्यों बेर भढियो है ठीक है।
पण गाँव री लुगाया ,जीणो रा घड़ा फोड़िया। ओ मन-मन में केवे,बाप रो बेर लेवण गियोतो, गाघरों गळे मो घात आयो हैं।
 धाड़ेतीयों रा बेर इयो भढता।

बचपन मे सुणि बातां री धुंधली लिखावट
  शैतानाराम सुथार
        बारू।

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