महान सम्राट राजा भोज
जब सृष्टि नहीं थी,
धरती नहीं थी,
जीवन नहीं था,
प्रकाश नहीं था,न जल
था, न थल
तब भी एक
ओज व्याप्त था
| इसी ओज से
सृष्टि ने आकर
लिया और यही
प्राणियों के सृजन
का सूत्र है
| समस्त भारत के
ओज और गौरव
का प्रतिबिम्ब हैं
राजा भोज | ये
महानायक भारत कि
संस्कृति में,साहित्य
में,लोक-जीवन
में,भाषा में
और जीवन के
प्रत्येक अंग और
रंग में विद्यमान
हैं ये वास्तुविद्या
और भोजपुरी भाषा
और संस्कृति के
जनक हैं |
लोक-मानस में
लोकप्रिय भोज से
भोजदेव बने जन-नायक राजा
भोज का क्रुतित्व,अतुल्य वैभव है
| 965 ईसवी में मालवा
प्रदेश कि ऐतिहासिक
नगरी उज्जैनी में
परमार वंश के
राजा मुंज के
अनुज सिन्धुराज के
घर इनका जन्म
हुआ |
वररूचि ने घोषणा
कि यह बालक
55 वर्ष 7 माह गौड़-बंगाल सहित दक्षिण
देश तक राज
करेगा | पूर्व में महाराजा
विक्रमादित्य के शौर्य
और पराक्रम से
समृद्ध उज्जैन नगरी में
पांच वर्ष की
आयु से भोज
का विद्या अध्ययन
आरम्भ हुआ इसी
पावस धरती पर
कृष्ण, बलराम और सुदामा
ने भी शिक्षा
पायी थी |
बालक भोज के
मेधावी प्रताप से गुरुकुल
दमकने लगा | भोज
कि अद्भुत प्रतिभा
को देख गुरुजन
विस्मित थे | मात्र
आठ वर्ष कि
आयु में एक
विलक्षण बालक ने
समस्त विद्या,कला
और आयुर्विज्ञान का
ज्ञान प्राप्त कर
लिया | भोज कि
तेजस्विता को द्देख
राजा मुंज का
ह्रदय काँप उठा
| सत्ता कि लालसा
में वाग्पति मुंज
भ्रमित हो गए
और उन्होंने भोज
कि हत्या का
आदेश दे दिया
| भला भविष्य के
सत्य को खड़ा
होने से कौन
रोक सकता है
?
काल कि प्रेरणा
से मंत्री वत्सराज
और चंडाल ने
बालक भोज को
बचा कर सुरक्षित
स्थान पर पहुंचा
दिया | महाराज मुंज के
दरबार में भोज
का कृत्रिम शीश
और लिखा पत्र
प्रस्तुत किया गया
| पत्र पढ़ते ही मुंज
का ह्रदय जागा,
वे स्वयं को
धिक्कारने लगे,पुत्र-घात की
ग्लानी में आत्मघात
करने को आतुर
हो उठे तभी
क्षमा-याचना के
साथ मंत्री वत्सराज
ने भोज के
जीवित होने कि
सूचना दी | अपने
चाचा कि विचलित
अवस्था देख भोज
उनके गले लग
गए | महाराज मुंज
ने अपने योग्य
राजकुमार को युवराज
घोषित कर दिया
| इसी जयघोष के
बीच महाराज मुंज
ने कर्णत के
राजा तिलक के
साथ युद्ध कि
योजना बनायी और
युद्ध अभियान पर
चल दिए | 999 ईसवी
में परमार वंश
के इतिहास ने
कर्वट ली | महाराज
मुंज युवराज कि
घोषणा करके गए
तो वापस नहीं
आये | गोदावरी नदी
को पार करने
का परिणाम घातक
रहा,महाराज मुंज
को जान गवानी
पड़ी | युवराज भोज महाराजाधिराज
बन गए मगर
अभी वे राजपाठ
सँभालने को तैयार
नहीं थे |
भोज ने अपने
पिता सिन्धुराज को
समस्त राजकीय-अधिकार
सौंप दिए और
वाग्देवी कि साधना
में तल्लीन हो
गए | पिता सिन्धुराज,
गुजरात के चालुक्यों
से युद्ध के
लिए चल दिए
और भोज के
रचना-कर्म ने
आकर लेना शुरू
किया | भोजराज ने काव्य,चम्पू,कथा,कोष,व्याकरण,निति,काव्य-शास्त्र,धर्म-शास्त्र,वास्तु- शास्त्र,ज्योतिष,आयुर्वेद,अश्व-शास्त्र,पशु-विज्ञान,
तंत्र,दर्शन,पूजा-पद्धति,यंत्र-विज्ञानं
पर अद्भुत ग्रन्थ
लिखे | मात्र एक रात
में चम्पू-रामायण
की रचना कर
समस्त विद्वानों को
चकित कर दिया,तभी परमार
वंश पर एक
और संकट आ
गया, महाराज सिन्धुराज
रण-भूमि में
वीरगति को प्राप्त
हो गए |
शूरवीर भोजराज ने शस्त्र
उठा लिया, युद्ध-अभियान छेड़ा,चालुक्यों
को पीछे हटाया,
कोंकण को जीता
| कोंकण विजय-पर्व
के बाद भोजराज
का राज्याभिषेक हुआ
| यह इतिहास का
दोहराव था क्योंकि
ठीक इसी तरह
अवंतिका के सम्राट
अशोक का राज्याभिषेक
भी अनेक विजय
अभियानों के बाद
ही हुआ था
| राज्याभिषेक के दिन
महाकाल के वंदन
और प्रजा के
अभिनन्दन से उज्जैन
नगरी गूंज उठी
| विश्व-विख्यात विद्वान महाराज
भोज की पटरानी
बनाने का सौभाग्य
महारानी लीलावती को,लेकिन
महाराज का अधिकाँश
समय रण-भूमि
में ही बिता
| विजय अभियानों के वीरोचित-कर्मों के साथ
विद्यानुरागी राजा भोज
ने अपने साहित्य-कला-संस्कारों
को भी समृद्ध
किया | उनकी सभा
पंद्रह कलाओं से परिपूर्ण
थी | राज्य में
कालीदास,पुरंदर,धनपाल, धनिक,
चित्त्प, दामोदर, हलायुद्ध, अमित्गति,
शोभन, सागरनंदी, लक्ष्मीधरभट्ट,
श्रीचन्द्र, नेमिचंद्र, नैनंदी, सीता,
विजया,रोढ़ सहित
देश भर के
पांच सौ विद्वान
रचनाकर्म को आकर
दे रहे थे|
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