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एक था आनंदपाल

एक था आनंदपाल

फिल्मी पटकथा से कम नहीं आनन्दपाल सिंह की दास्तान
एक था आनंदपाल 
पुलिस गिरफत से फरार हुए आनन्दपाल सिंह की कहानी किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं है। ये दास्तान है गांव के एक ऐसे युवक की जो पढ़ लिखकर अपना करियर बनाना चाहता था लेकिन उसकी महत्वकांक्षाओं और राजनैतिक दुश्मनी ने उसे बना दिया प्रदेश का सबसे बड़ा गैंगस्टर। राजस्थान के नागौर जिले के डीडवाना रोड पर बसा है एक छोटा सा गांव सांवरदा। वैसे तो राजस्थान के नक्शे पर इस गांव की कोई खास पहचान नहीं है लेकिन पिछले कुछ सालों में अगर से गांव किसी खास वजह से जाना जाता है तो वो है प्रदेश के सबसे बड़े गैंगस्टर आनन्दपाल सिंह की वजह से। जी हां यही वो गांव है जहां ठाकुर हुकुम सिंह के घर आनन्दपाल सिंह का जन्म हुआ था। घर पर आनन्दपाल सिंह को पप्पु के नाम से बुलाया जाता था। प्रारंभिक शिक्षा गांव में होने के बाद आनन्दपाल 12वीं की पढाई करने लाडनू और फिर आगे की पढाई करने डीडवाना चला गया। डीडवाना में स्नातक करने के बाद आनन्दपाल प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने लगा था लेकिन इसी दौरान उसका रुझान राजनीति की तरफ हुआ और साल 2000 में हुए पंचायत समिति के चुनाव में चुनाव जीता और प्रधान के चुनाव में पूर्व केबिनेट मंत्री हरजीराम बुरडक के पुत्र जग्गनाथ से दो वोटों से चुनाव हार गया। इसी साल पंचायत समिति के स्थायी समितियों के चुनाव में हरजीराम बुरडक से उसका विवाद हो गया। बस यहीं से शुरू हुआ आनन्दपाल से गैंगस्टर आनन्दपाल बनने का सफर। शुरू में पंचायत समिति में राजकार्य में बाधा पहुंचाने का मामला दर्ज हुआ और उसके बाद धीरे धीरे एक के शुरू हुआ महत्वाकाक्षांओं के धरातल पर बड़ा आदमी बनने की दौर जिसने उसे बना दिया लीकर किंग लेकिन साथ ही उसके खाते में जुड़ गए लूट, हत्या, किडनेपिंग, रंगदारी के 28 मुकदमें।
साल 2006 में जीवण राम गोदारा हत्याकांड ने आनन्दपाल को रातों रात अपराध की दुनिया में कुख्यात कर दिया। यहां से आनन्दपाल ने अपना एक बड़ा नेटवर्क बना लिया। और यूपी,एमपी और बिहार के बदमाशों की मदद से आधुनिक हथियार जुटा लिए। शेखावाटी के बदमाश बलवीर बानुड़ा के साथ मिलकर इसके नागौर से निकलकर शेखावाटी की तरफ रुख किया। शेखावाटी में राजू ठेठ गैंग के खिलाफ आनन्दपाल सिंह के गैंग की कई बार मुठभेड़ हुई।
साल 2012 में जयपुर के फागी से गिरफताकैसे आया अपराध की दुनिया में
एक था आनंदपाल 
आनंदपाल अपराध की दुनिया में बलबीर के गैंग की वजह से आया था। कहानी 1997 से शुरु हुई, तब वह बलबीर बानूड़ा और राजू ठेहट का दोस्त हुआ करता था। दोनों शराब के धंधे में जुड़े हुए थे, 2005 में हुई एक हत्या ने दोनों दोस्तों के बीच दुश्मनी की दीवार खड़ी कर दी। इसके बाद शराब के ठेके पर बैठने वाले सेल्समैन विजयपाल की राजू  ठेहट से किसी बात पर कहासुनी हो गई। विवाद इतना बढ़ा की राजू ने अपने साथियों के साथ मिलकर विजयपाल की हत्या कर दी।

बुलेट प्रूफ जैकेट पहन खूनी खेल का शौकीन था आनंदपाल
आनंदपाल को बुलेट प्रूफ जैकेट पहनकर खूनी होली खेलने का बहुत शौक था। उसने बीकानेर में जेल में अपने विरोधियों पर खूनी हमला कर गोलियों से छलनी कर दिया था। यह मामला विधानसभा में कई दिनों तक सुर्खियों में रहा था। खतरनाक हथियारों के बल पर आनंदपाल राजस्थान के अपराध जगत में खुद को पहने नंबर पर लाने का प्रयास कर रहा था।

जेल में शाही लाइफ जीता था
जेल से भागने के लिए आनंदपाल ने जेल के डिप्टी से लेकर मुख्य प्रहरी को धन-बल के प्रभाव से काबू में कर लिया था। अजमेर जेल में दुकान से रोज सुबह पांच लीटर दूध व पांच लीटर छाछ उसके लिए जेल में जाती थी। वह जेल के अंदर स्मार्ट फोन यूज करता था।

दफन हुए कई राज
आनंदपाल की दुश्मनी कई राजनैताओं, शराबमाफियों, प्रोपर्टी व्यवसायियों से थी। अपने स्वार्थ कई राजनैताओं ने इसकों टूल बनाकर अपने हित साधे थे और वर्तमान में आनंदपाल के नाम से कई नेता खौफ खाए हुए थे और पुलिस के सुरक्षा घेरे में चल रहे हैं। अब आनंदपाल की मौत के साथ ऐसे कई राज दफन हो गए जो सिर्फ वही जानता था। आनंदपाल की खास बात यह थी कि वह अपनी कोई बात बाएं हाथ से दाएं हाथ और दाएं हाथ को बाएं हाथ को पता नहीं चलने देता था। इसी प्लानिंग के तहत उसने करोड़ों रुपए की अकूत संपत्ति भी जमा की थी।

21 आईपीएस, तीन हजार से ज्यादा पुलिसकर्मी लगे थे ढूंढ़ने में
आनंदपाल की चंबल के बीहड़ों में जाने की सूचना पर राजस्थान पुलिस, मध्यप्रदेश पुलिस, यूपी पुलिस उसकी तलाश में जुट गई थी। पुलिस ने अब तक उसकी गैंग में शामिल 700 से ज्यादा लोगों पकड़ चुकी है।र होने बलवीर बानूडूा के साथ उसे बीकानेर जेल में भेजा गया था लेकिन जेल में राजू ठेठ के गैंग की ओर से हुई फायरिंग में बलबीर बानूड़ा की मारा गया लेकिन आनन्दपाल बच गया। सुरक्षा कारणों के चलते आनन्दपाल को अजमेर की सिक्योरिटी जेल में भेजा गया था। पेशी के दौरान कई बार आनन्दपाल मुख्यधारा में आने की बात मीडिया के सामने कह चुका था और आईबी की रिपोर्ट में भी उसकी सुरक्षा को लेकर चिंताए जाहिर की जा चुकी थी। बहराहल ये पूरी कहानी दर्शाती है कि आनन्दपाल जूर्म की दुनिया में आना नहीं चाहता था लेकिन अपने सपनों को पूरा करने के लिए उसने यही रास्ता अपनाया और एक बार जब दुनिया में उसके पैर जम गए तो उसे ये दुनिया रास आ गई। लेकिन एक बडा सच ये है कि फिल्मों में जिस तरह कहानियों का सुखद अंत होता है जरूरी नहीं कि आम जिंदगी में भी कहानियों का अंत सुखद ही रहे।
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                    महाभारत के अर्जुन से भी बड़े निशानेबाज पैदा हो चुके है जो अमावास जेसी काली रात में रात को 11:30 बजे सिर्फ दिवार पर लगे आईने में देखकर गोली निशाने पर लगाकर किसी को मार सकते है, एसे महान निशानेबाजो को ओलम्पिक में ना भेजकर देश का बहुत बड़ा नुकसान किया है, वरना देश को ओलम्पिक शूटिंग प्रतियोगिता के प्रत्येक वर्ग में अनेक स्वर्ण पदक मिल चुके होते, दुनिया में हमारे हिंदुस्तान का और हिंदुस्तान में हमारे राजस्थान का मान बढ़ता                                                                                                                                    आनंदपाल इतना कमजोर शूटर नहीं था के 100 राउंड में से एक भी निशाने पर न लगे। वहीं पुलिस की छह की छह गोलिया आनंदपाल को लग गई। आनंदपाल और उसके साथियों के सरेंडर होने के बाद पुलिस ने धोके से हमला किया और एनकाउंटर की कहानी रच दी।

1 टिप्पणी

  1. भेदभाव को भुलाकर आओ, क्षात्र शक्ति का एल्गार है.!
    एक साथ फिर जुट जाओ तुम, राणा की ललकार है.!!

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