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क्या यह लौकतंत्र कि हत्या नहीं ?

पूरे के पूरे राजपूत समाज को ही अपराधी के रूप में पेश करने की जो घिनौनी हरकत की गयी उनके मुँह पर तमाचा है ये लेख। आँखें और दिमाग़ खुला रख कर इसे पूरा पढ़िए,हर प्रश्न का तार्किक जवाब है इसमें।
हमने न कभी अपराधी का समर्थन किया न करेंगे, हाँ अन्याय के विरुद्ध आवाज़ सदियों से बुलंद करते है आगे भी करते रहेंगे।

क्या यह लौकतंत्र कि हत्या नहीं 
पिछले कुछ दिनों से सरकार कि दमनकारी नितीयों के विरूद्द चल रहे आंदोलन के दौरान बहुत सारे लोगों से मिलना हुआ विचार जानने का मोका मिला । पहले कि तरह इस बार भी बहुत से नए चहरे व नए विचार सामने आए । आंदोलन के दौरान मैंने किसी से कोई सवाल या जवाब करने में अपनी उर्जा का नाश करना अनुचित समझा । लेकिन अब मेरे अपनों से कुछ बातें करना जरूरी समझता हुं ।
आंदोलन के संबंध में कुछ बिंदु लिखता हुं जो पहले भी कई लेखों में लिख चुका हुं पुन: लिखता हुं, विचार करें व निर्णय ले क्या आंदोलन गलत था ।

सबसे पहला और महत्वपुर्ण बिंदु आनंदपाल एक अपराधी था इसे हम सभी स्वीकार कर रहे हैं । ना वह कल हमारा आदर्श था ना आज है ना कल होगा । ना हम उसके कार्यों का महीमामंडन कर रहे क्योंकि हर इंसान कि भांती उसमें भी कुछ खुबीयां भी थी कुछ कमीयां भी थी । हम उसके अपराधों या उसके रास्ते का भी समर्थन नहीं कर रहे । यह आंदोलन आनंदपाल एनकाउंटर कि निष्पक्ष जांच के उसकि मां के न्यायीक अधिकार से लेकर एनकाउंटर के बाद कि तानाशाही के विरूद्द था ना कि आनंदपाल को शहीद घोषीत करवाने के लिए ।

एक वाक्य में कहुं तो यह न्याय पसंद लोगों का अन्याय के विरूद्द व आजादी पसंद लोगों का तानाशाही के विरूद्द आंदोलन था ।

आपको जानकारी ना हो तो बता दुं पहले मुम्बई में हर वर्ष 400-500 एनकाउंटर होते थे और ज्यादातर फर्जी क्योंकि वहां सुपारी लेने का काम पुलिस अधिकारी करने लग गए थे जिस पर कई फिल्म, डोक्युमेंटरी व किताबें प्रकासित हो चुकी है । उन सब को ध्यान में रखते हुए PACL v/s Maharastra State केस में CJI Lodha ने एनकाउंटर संबंधी 16 गाईडलाइन दि जिन्हें मेरे पुर्व लेखों में आप पढ सकते हैं या Google कर सकते हैं उनमें से एक का भी पालन आनंदपाल एनकाउंटर में नहीं किया गया । क्या यह भारतीय न्याय प्रक्रिया कि अवहेलना नहीं थी ?

वह अपराधी था मानते हैं लेकिन उससे ज्यादा मुकदमे वाले लोग विधानसभा व लोकसभा में बैठे हैं यह भी हम जानते हैं । लेकिन उसकि मृत्यु के बाद उसके परिवार को सांत्वना देने 100 लोग आएं या लाख यह तो उस व्यक्ति व परिवार के व्यवहार पर निर्भर करता है तथा यह उनका न्यायीक व लोकतंत्रात्मक अधिकार है ।
फिर आनंदपाल कि मौत के बाद 25 तारीख़ से उसके घर गए सभी जाती के सैंकडो़ लोगों को गिरफदार क्यों किया गया ? 
क्या यह आपातकाल समकक्ष वातावरण नहीं ? 
क्या इसमें मौलिक अधिकारों का हनन होता नजर नहीं आया आपको ?

हां वह अपराधी था और अपराधी ना हमारा आदर्श ना किसी और का आदर्श लेकिन जो अपराधी था वो तो मार दिया गया तो क्या अब लोग उसके परिवार को सांत्वना देने भी नहीं जा सकते । क्यों पुलिस ने पुरे सांवराद को चारों तरफ से खुदवा दिया ताकि कोई आ जा ना सके । गांव कि पानी व बिजली तीन दिन तक रोक दि गई थी 

क्या यह लौकतंत्र कि हत्या नहीं ?


आपको जानकारी हो तो जिस सेना के लिए हम सम्मान भरी निगाहें रखते हैं । उस सेना के जवानों को पीटा गया था विडीयो बनाया गया था और जब जवाबी कार्यवाही में मेजर गोगाई ने एक उपद्रवी को गाडी़ के आगे बांधकर घुमाया तो उन पर कानुनी कार्यवाही कि गई तथा मानवाधिकार आयोग ने कुछ दिन पहले उस उपद्रवी को 10 लाख रू मुवावजा देने का नोटीस दिया है तो आप यह बताएं कि यदि उन आतंकवादीयों के मानवाधिकार हो सकते हैं तो क्या आनंदपाल कि मां व बेटी के नहीं ?

पुलिस ने एक 6 माह के बच्चे, उसकी मां व एक गर्भवती मां को 10 दिन तक जैल में रखा तथा 10 दिन बाद मिली जमानत के बावजुद भी आज तक नजरबंध है

क्या आप बताएंगे कि उस 6 माह के बच्चे ने पुलिस एनकाउंटर में क्या बाधा डाली होगी या आनंदपाल को कैसा सहयोग दिया होगा ? 
क्या उस गर्भ में पल रहे व 6 माह के बच्चे व उनकि माताओं के मानवाधिकार नहीं ?
जब सरकार कसाब व बुरहान जैसों का अतीम संस्कार उनके धर्म को ध्यान में रखते हुए करती है तो हिंदुत्व के नाम पर सत्ता में आई सरकार ने आनंदपाल का अंतीम संस्कार क्यों सुर्याअस्त के बाद कर दिया ?
क्या यह हमारी आस्थाओं के साथ खिलवाड़ नहीं ?


आनंदपाल के गांव में 12 जुलाई को एक श्रृदांजली सभा हुई जिसमें पुलिस ने फायरींग की उसमें एक आंदोलनकारी मारा गया जिसे लालचंद शर्मा कह प्रचारित किया गया, मिडीया में विज्ञापन दिया गया परिजन सम्पर्क करें अन्यथा सरकार दाह संस्कार कर देगी । जबकि वह व्यक्ति लालचंद शर्मा ना होकर सुरेन्द्र सिंह राठौड़ था जिसकी पहचान कल परिवार ने कर मृतक कि बोडी SMS से प्राप्त कि व आज दाह संस्कार किया । यह सुरेन्द्र सिंह उसी गांव मालासर का रहने वाला है जहां एनकाउंटर हुआ व जिस घर में एनकाउंटर हुआ उनका भतीजा लगता है जो एनकाउंटर का चश्मदीद गवाह बताया जा रहा है ।
आप बताएं आधार मशिन से सपकार ने उसकि पहचान सुनिश्चित क्यों नहीं की ?
पांच दिन तक गलत प्रचारित कर क्यों विज्ञापन दिए गए ? 
आनंदपाल अपराधी था लेकिन सुरेन्द्र सिंह ?

ऐसे सैंकडो़ कारणों के कारण यह आंदोलन जनमानस का आंदोलन बना जिसमें भाजपा सांसद राजकुमार सैनी व भाजपा विधायक घनश्याम तीवाडी सहीत वर्तमान विधायक मनोज जी न्यांगली, गिरीराज जी मलिंगा, भंवर सिंह जी भाटी, किरोडीलाल मिणा, पुर्व मंत्री राजेन्द्र जी गुढा़, प्रताप जी खाचरियावास, पुर्व विधानसभाध्यक्ष दिपेन्द्र सिंह, पुर्व केन्द्रीय मंत्री भंवर जितेन्द्र सिंह, सलमान खुर्शिद, दिग्विजय सिंह, चन्द्रेश कुमारी, पुर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित अनेक बडे़ नेताओं के साथ साथ अनेक छात्र नेताओं तथा रावणा राजपुत समाज के व राजपुत समाज के सभी संगठन, ब्राह्मण महासभा राजस्थान, राष्ट्रीय ब्राह्मण महासंघ व कुछ अन्य जातीयों के संगठनों ने प्रत्यक्ष रूप से इस आंदोलन को समर्थन दिया ।
इसलिए आपको समझना चाहिए था कि विरोध फर्जी एनकाउंटर के खिलाफ है, इस तानासाही रवैये से है, इस पक्षपात से भरे संविधान व कानुन व्यवस्था से है ना कि किसी जाती के खिलाफ या किसी मंत्री के खिलाफ ।

क्योंकि पुलिस प्रशासन का तानाशाही पुर्ण प्रयोग करके जिन सत्ताधिशों नें 47 गुजरों को, 1 मुस्लिम (सहाबुद्दिन), 1 जाट (दारिया), 1 प्रजापती (तुलसी प्रजापती), 2 राजपुत (चतर सिंह व सुरेन्द्र सिंह) तथा 1 रावणा राजपुत (आनंदपाल) को मारा है वो यहीं रूकने वाले तो है नहीं । हो सकता है अगला नम्बर किसी अन्य जाती के भाई का हो ।
इस प्रकार यह आंदोलन पुर्ण रूप से न्यायीक, नैतिक, संवैधानिक, मौलिक अधिकारों के लिए व एक अच्छी राजव्यवस्था कि स्थापना के लिए था ।
इस आंदोलन में जाट या राजपुत का कहीं दुर दुर तक कोई संबंध नहीं था जिसे राजनिती के तहत ऐसा बनाने कि कोशीश कि गई वरना सांवराद गांव में कई कार्यक्रता जाट थे । आंदोलन के दौरान विशेष ध्यान रखा गया कि किसी आमजन को कोई नुकसान ना हो विशेष तौर से किसी जाट या मुस्लिम को तो बिलकुल नहीं ताकि यह गंदी राजनिती इसे जाट राजपुत या हिंदु मुस्लिम दंगो का नाम ना दे सके । इसी का परिणाम था कि लाखों कि भीड़ सांवराद में होने के बावजुद गांव या आस पास के किसी भी जाट को कोई परेशानी नहीं होने दी आंदोलन के कारण ।
सभी के विचार व जवाब सभ्य भाषा में आमंत्रित है।
कुंवर अवधेश शेखावत ठि-धमोरा

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