A True Story by Sher Singh Rana in Tihar Jail "JAIL DIARY" |
Jail Diary |
जी यानी मैं, शेर सिंह राणा, इस समय यू.पी. के एक
शहर मुरादाबाद में नाई की एक छोटी-सी दुकान में
बैठे हुए अपनी शेव बनवा रहे थे. नाई ब्रश से झाग
बनाने में लगा हुआ था. तभी नाई की दुकान में रखे
हुए टी.वी. में से आवाज आई—नमस्कार. अब सुनिए
आज के मुख्य समाचार. सांसद और डाकू फूलन
देवी का कथित हत्यारा शेर सिंह
राणा एशिया की सबसे सुरक्षित माने जाने
वाली तिहाड़ जेल से आज सुबह 6:30 बजे के करीब
फरार हो गया है.
पूरे दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में हाइ एलर्ट
कर दिया गया है और पुलिस की कई टीमें बना कर शेर
सिंह राणा की खोज-बीन जारी है... इसके बाद न्यूज
चैनल वाला वह व्यक्ति टी.वी. पर दोबारा नजर आने
लगा, जो अब बोल रहा था कि अब हम आपको शेर
सिंह राणा की तस्वीर दिखा रहे हैं. ठीक से देख
लीजिए और कोई जानकारी होने पर तुरंत इन दिए हुए
फोन नंबर पर संपर्क कीजिए. शेर सिंह
राणा की तस्वीर स्क्रीन पर आने लगी.
नाई को नहीं मालूम था कि जिस आदमी के चेहरे पर
वो क्रीम से झाग बना रहा है, वह कोई और नहीं,
बल्कि वही शेर सिंह राणा है जिसकी तस्वीर इस समय
वह न्यूज टी.वी. पर देख रहा है.
*****
Sher Singh Rana |
फूलन देवी की हत्या में जो गाड़ी इस्तेमाल हुई,
उसकी बिना पर पुलिस ने मुझसे मेरे घर पर पूछताछ के
लिए छापा मारा, लेकिन उस दिन मैं उन्हें नहीं मिला.
जब मेरे घरवालों ने मुझे फोन पर पुलिस के बारे में
बताया तो मैंने अपने परिचित पुलिस वाले से बात की.
वे कहने लगे कि हम जानते हैं कि तुमने कुछ
नहीं किया और दिल्ली वाले पूछताछ करके छोड़ देंगे.
मैंने देहरादून जाकर अपने परिचित पुलिस अफसर से
मुलाकात की तो उसने मुझे उस समय के देहरादून के
एस.एस.पी. के सामने पेश किया. एस.एस.पी. साहब
जब मुझसे बात कर रहे थे तो दिल्ली के क्राइम ब्रांच
के डी.सी.पी. साहब भी वहां आ गए. दोनों ने मुझसे
डालनवाला थाने में काफी देर बात की और मेरे बारे
में और मेरे जीवन की इच्छाओं के बारे में मुझसे
जानकारी हासिल की, जिसमें मैंने उन्हें अपनी यह
इच्छा भी बताई कि मैं अफगानिस्तान जाकर
आखिरी हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान
की समाधि को वापस भारत लाना चाहता.''
मेरी ऐसी इच्छा जानकर वे दोनों बहुत खुश और
प्रभावित भी हुए. उन्होंने मुझसे कहा कि फूलन
देवी को गोली मारने वालों को जल्दी से पकड़ने
का भारी दबाव हमारे ऊपर गृह मंत्रालय से है और
हमारा शक है कि गोली मारने वाले नकाबपोशों में
तुम भी थे. मैंने कहा कि सर, अगर मैं कार कि मैं
नहीं था तो. वे बोले कि तुम्हारे कहने से अब कुछ
नहीं है क्योंकि हमें अपनी नौकरी तुमसे
ज्यादा प्यारी है, लेकिन फिर भी क्योंकि तुमने अच्छे
सामाजिक काम पहले किए हैं और आगे
भी देशभक्ति के काम तुम करना चाहते हो, इसलिए
हम तुम्हारी प्रेस कॉन्फ्रेंस यहां डालनवाला थाने में
करा देते हैं और एक बात तुम हमारी बताई हुई टी.वी.
न्यूज वालों के सामने बोल दो और एक तुम
अपनी मर्जी की बात बोल दो कि तुम अफगानिस्तान
जाकर सम्राट की समाधि भारत वापस लाना चाहते
हो. मैंने कहा कि आपकी पसंद की क्या बात
बोलनी है, तो वे बोले तुम बोलना कि फूलन को तुमने
बेहमई कांड का बदला लेने के लिए मार दिया.
मैंने उनके कहे अनुसार वहीं डालनवाला थाने में उनके
सामने ही प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपनी और
उनकी बातों को बोल दिया, क्योंकि इसके
अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं था. इसके बाद
दिल्ली से आए डी.सी.पी. साहब मुझे
अपनी पिजैरो गाड़ी में बिठाकर रात को करीब 12
बजे दिल्ली पहुंच गए और अपने क्राइम ब्रांच के
ऑफिस में ले गए. अगले दिन मुझे कोर्ट में पेश करके
मुझे रिमांड पर पूछताछ के लिए ले लिया.
रिमांड पर पुलिस वालों ने मुझसे पूछा कि अब इस बात
का फैसला तो जज साहब करेंगे कि तुमने फूलन
को मारा या नहीं, लेकिन जिसने भी मारा ठीक
किया, क्योंकि उसने अपने जीवन में सौ से
भी ज्यादा लोगों की हत्या बिना किसी कारण कर
रखी थी. जिन लोगों का यह कहना है कि फूलन के
ऊपर बात अत्याचार हुए थे और उसका बदला लेने के
लिए वह डाकू बनी और लोगों की हत्याएं की, यह
बात मानना और लोगों का ऐसा सोचना एकदम गलत
है.
मैंने उनसे कहा कि सर, फूलन देवी खुद अपनी इच्छा से
डाकुओं के साथ रहने के लिए गई थी और अगर उन
डाकुओं ने फूलन के साथ सेक्स किया तो यह उन
लोगों का माहौल था और डाकुओं का हर गिरोह
अपने गैंग में 3-4 औरतों को इसलिए
रखता ही था कि वह उनके साथ रंगरेलियां मना सके,
क्योंकि डाकू हर समय बीहड़ों में ही रहते थे. ये औरतें
गिरोह का खाना बनाने में भी मदद करती थीं.
इसलिए हर गिरोह अपनी आवश्यकता अनुसार अपने
गैंग में औरत रखता था. जिस गिरोह में फूलन देवी थी,
उस गैंग के मुखिया दो सगे भाई थे, जिनका नाम
श्रीराम और लालाराम था. फूलन देवी का यह
कहना है कि श्रीराम और लालाराम ने उसके साथ
बलात्कार और अत्याचार किया.
अगर फूलन देवी की यह बात मान ली जाए तो फूलन
देवी को इन दोनों भाइयों को मारकर अपने ऊपर हुए
अत्याचार का बदला लेना चाहिए था और अगर फूलन
इन्हें मारती तो मैं फूलन का सबसे बड़ा समर्थक
होता, क्योंकि तब यह सच में बहादुरी होती है
कि जिसने आपके ऊपर जुल्म किया, आपने उसे सबक
सिखाया. लेकिन फूलन इन
दोनों भाइयों को कभी नहीं मार पाई.
फूलन देवी ने बेहमई गांव में जिन 22
लोगों की हत्या अपने गैंग के साथ मिलकर की,
उनकी सिर्फ यह गलती थी कि इस गांव के एक
आदमी ने अपने घर की शादी के समारोह में इन
दोनों डकैत भाइयों का न्यौता दे दिया था. और ये
22 लोग भी उस शादी समारोह में शामिल थे. इन 22
मरने वालों को तो यह भी नहीं पता होगा कि वह
क्यों मर रहे हैं? अगर फूलन उस न्यौता देने वाले
आदमी को मारती तब भी फूलन की बात
थोड़ी सही मानी जा सकती कि जो भी हमारे
विरोधी का साथ देगा, उसे हम नुकसान पहुंचाएंगे.
लेकिन इन गरीब 22 लोगों की तो कोई दूर-दूर तक
की गलती नहीं थी.
फूलन या लोगों का यह कहना है कि जब फूलन के
साथ रेप हुआ तो इन गांव वालों ने उसे
क्यों नहीं बचाया तो इस बात पर मेरा यह कहना है
कि अगर वे इतने बहादुर होते कि किसी को डाकुओं से
बचा सकें तो अपने को मरने से ही न बचा लेते. इसके
अलावा फूलन ने पचीसियों डकैती मारी और हर
डकैती के समय पैसों की लालच में 2-3 हत्याएं
हमेशा अपने गैंग का रौब जमाने के लिए कीं. फूलन के
दुश्मन श्रीराम और लालराम राजपूत थे, इसलिए
फूलन ने खुलेआम कहा कि मैं पूरी धरती से
सभी क्षत्रियों को मार कर खत्म कर दूंगी. फूलन
देवी से कोई पूछे
कि दो लोगों की गलती का खामियाजा वह
पूरा समाज क्यूं भुगतेगा, जिसने इस देश की सेवा में
अपना सब कुछ लगाया हो.
बाद में जब फूलन ने आत्मसमर्पण किया तो उस समय
श्री अर्जुन सिंह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और
इन्हीं के सामने फूलन ने आत्म-समर्पण किया.
श्री अर्जुन सिंह खुद राजपूत नेता थे. अगर फूलन
को राजपूतों से इतनी घृणा थी तो श्री अर्जुन सिंह
के सामने समर्पण क्यों किया? सिर्फ इसलिए
कि अर्जुन सिंह ने फूलन की सभी नाजायज शर्तें मान
ली थीं और इन शर्तों के मुताबिक फूलन को समर्पण
के एवज में खूब सारी जमीन-जायदाद सरकार दे
रही थी, जो कि फूलन के जीवन का मकसद
था कि कैसे ज्यादा-से-ज्याद
ा रुपया कमाया जा सकता था और इसी लालच के
कारण वह डकैत बनी थी और जब उस धन के लालच
की पूर्ति समर्पण से होती दिखी तो समर्पण कर
दिया.
अगर श्रीराम लालाराम से वह इतनी नफरत
करती थी कि उस नफरत में उसने सौ से
भी ज्यादा लोगों की हत्याएं कर दीं तो सांसद बनने
के बाद जब उसके पास पावर था तो पुलिस
की सहायता से उनको और उनके गैंग को खत्म
क्यों नहीं क रवाया? सिर्फ इसलिए
कि उसका दुश्मनी से कोई वास्ता ही नहीं था,
क्योंकि उसका मकसद सिर्फ पैसा था, जो उसने तब
भी खूब डकैतियां डालकर कमाया, जब वह डकैत
थी और अब भी कमा रही थी, जब वह सांसद थी.
कम-से-कम 20 करोड़ से
भी ज्यादा की प्रॉपर्टी फूलन ने सांसद बनने के बाद
गलत तरीके से कमा ली और जिन
पिछड़ी जातियों की सहायता करने का वादा करके
वह चुनाव जीती थी, उन्हें भूल गई और याद
रहा तो सिर्फ पैसा. सिर्फ पैसा, जो उसके लिए सब
कुछ था.
फूलन देवी के बारे में मेरे विचार जानने के बाद मेरे
सामने बैठे पुलिसवालों ने भी मेरी बात पर
अपनी सहमति दिखाई और उनमें से एक
बोला कि क्या अजीब बात है कि 1982 में हमारे जैसे
कितने ही पुलिस वालों ने फूलन
को जिंदा या मुर्दा पकडऩे के लिए रात-दिन एक
किया हुआ होगा ताकि फूलन
को जिंदा या मुर्दा पकडऩे पर 50 हजार
का जो इनाम सरकार ने रखा था, वह हासिल कर सकें
और आज जब किसी ने उसे मार दिया है तो उसे इनाम
देने की जगह पकड़कर जेल भेजना पड़ रहा है.
*****
फिर एक अफसर ने मुझे इंग्लिश का हिंदुस्तान टाइम्स
दिया, जिसमें यह खबर छपी हुई थी कि उत्तर प्रदेश के
जालौन जिले में फूलन के मरने के बाद लोगों ने हवा में
गोलियां चला कर खुशियां मनाईं और बेहमई कांड के
करीब 20 साल बाद इलाके में दीवाली का त्यौहार
मनाया जाएगा. पूरे उत्तर प्रदेश में फूलन के मरने के
उपलक्ष्य में जगह-जगह खुशियां मनाने की खबरें
भी छपी थीं.
*****
जेलर ने मुझसे कहा फूलन को मारने के लिए तूने एक-
दो करोड़ तो लिए ही होंगे. मैंने कहा कि सर, मैं
पैसों के लालच में काम करने वाला आदमी नहीं. मैं
देशभक्त आदमी, और अपने देश और समाज के लिए
अपने घर से पैसे खर्च करके काम क रने
वाला आदमी बाकी रही बात आपका अच्छा करने
की तो मैं कोई मुर्गा नहीं, लेकिन मैं आपके लिए
अपनी इच्छा से बाद में कुछ-न-कुछ करूंगा,
क्योंकि आप मेरे कहे अनुसार मेरा काम कर देते हो.
*****
अगले दिन मुझे कोर्ट में पेश
कि या तो मेरी माता जी 100-200 राजपूत सभा के
लोगों के साथ कोर्ट के बाहर ही मिलीं. कोर्ट रूम के
अंदर जज साहब के आदेश लेकर मेरी माताजी मुझ् से
बातें क रने लगीं और गले लगा कर रोने लगीं, जिसके
कारण मेरी भी आंखों में आंसू आ गए.
मेरी माताजी ने मुझे बताया कि तुम्हारे
पिताजी का अंतिम संस्कार तुम्हारे ताऊजी के लड़के
को करना पड़ा था, क्योंकि तुम्हारे
दोनों भाइयों को पैरोल नहीं मिल पाई थी और यह
बात मैंने तुम्हें पहले इसलिए नहीं बताई थी, क्योंकि मैं
नहीं चाहती थी कि तुम गुस्से या परेशानी में कोई
गलत कदम उठाकर अपने असली मकसद से भटको.
इसके बाद पुलिस जब मुझे कोर्ट से बाहर ले जाने
लगी तो राजपूत सभा के लोगों ने मेरे पक्ष में खूब
नारे लगाए और मुझे आश्वासन दिया कि हम सब
मिलकर तुम्हें जेल से एक दिन आजाद कराएंग
A True Story by Sher Singh Rana in Tihar Jail "JAIL DIARY"
In photo you have shown that Sher Singh brought Maharana Pratap's ashes. Please change that to Prithviraj chouhan.
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