मुगल सैनिकों की नाक काटने वाली गढ़वाल की रानी कर्णावती
मुगल सैनिकों की नाक काटने वाली गढ़वाल की रानी कर्णावती
मुगल सैनिकों की नाक काटने वाली गढ़वाल की रानी कर्णावती
भारतीय इतिहास में जब
रानी कर्णावती का
जिक्र आता है
तो फिर मेवाड़
की उस रानी
की चर्चा होती
है जिसने मुगल
बादशाह हुमांयूं के लिये
राखी भेजी थी।
इसलिए रानी कर्णावती
का नाम रक्षाबंधन
से अक्सर जोड़
दिया जाता है।
लेकिन बहुत कम
लोगों को पता
है कि इसके
कई दशकों बाद
भारत में एक
और रानी कर्णावती
हुई थी और
यह गढ़वाल की
रानी थी। इस
रानी ने मुगलों
की बाकायदा नाक
कटवायी थी और
इसलिए कुछ इतिहासकारों
ने उनका जिक्र
नाक कटी रानी
या नाक काटने
वाली रानी के
रूप में किया
है। रानी कर्णावती
ने गढ़वाल में
अपने नाबालिग बेटे
पृथ्वीपतिशाह के बदले
तब शासन का
कार्य संभाला था
जबकि दिल्ली में
मुगल सम्राट शाहजहां
का राज था।
शाहजहां के कार्यकाल
पर बादशाहनामा या
पादशाहनामा लिखने वाले अब्दुल
हमीद लाहौरी ने
भी गढ़वाल की
इस रानी का
जिक्र किया है।
यहां तक कि
नवाब शम्सुद्दौला खान
ने 'मासिर अल
उमरा' में उनका
जिक्र किया है।
इटली के लेखक
निकोलाओ मानुची जब सत्रहवीं
सदी में भारत
आये थे तब
उन्होंने शाहजहां के पुत्र
औरंगजेब के समय
मुगल दरबार में
काम किया था।
उन्होंने अपनी किताब
'स्टोरिया डो मोगोर'
यानि 'मुगल इंडिया'
में गढ़वाल की
एक रानी के
बारे में बताया
है जिसने मुगल
सैनिकों की नाट
काटी थी। माना
जाता है कि
स्टोरिया डो मोगोर
1653 से 1708 के बीच
लिखी गयी थी
जबकि मुगलों ने
1640 के आसपास गढ़वाल पर
हमला किया था।
गढ़वाल के कुछ
इतिहासकारों ने हालांकि
पवांर वंश के
राजाओं के कार्यों
पर ही ज्यादा
गौर किया और
रानी कर्णावती के
पराक्रम का जिक्र
करना उचित नहीं
समझा।
रानी कर्णावती के बारे
में मैंने जितनी
सामग्री जुटायी। उससे यह
साफ हो जाता
है कि वह
पवांर वंश के
राजा महिपतशाह की
पत्नी थी। यह
वही महिपतशाह थे
जिनके शासन में
रिखोला लोदी और
माधोसिंह जैसे सेनापति
हुए थे जिन्होंने
तिब्बत के आक्रांताओं
को छठी का
दूध याद दिलाया
था। माधोसिंह के
बारे में गढ़वाल
में काफी किस्से
प्रचलित हैं। पहाड़
का सीना चीरकर
अपने गांव मलेथा
में पानी लाने
की कहानी भला
किस गढ़वाली को
पता नहीं होगी।
कहा जाता था
कि माधोसिंह अपने
बारे में कहा
करते थे, ''एक
सिंह वन का
सिंह, एक सींग
गाय का। तीसरा
सिंह माधोसिंह, चौथा
सिंह काहे का।
'' इतिहास की किताबों
से पता चलता
है कि रिखोला
लोदी और माधोसिंह
जैसे सेनापतियों की
मौत के बाद
महिपतशाह भी जल्द
स्वर्ग सिधार गये। कहा
जाता है कि
तब उनके पुत्र
पृथ्वीपतिशाह केवल सात
साल के थे।
इसके 1635 के आसपास
की घटना माना
जाता है। राजगद्दी
पर पृथ्वीपतिशाह ही
बैठे लेकिन राजकाज
उनकी मां रानी
कर्णावती ने चलाया।
इससे पहले जब
महिपतशाह गढ़वाल के राजा
थे तब 14 फरवरी
1628 को शाहजहां का राज्याभिषेक
हुआ था। जब
वह गद्दी पर
बैठे तो देश
के तमाम राजा
आगरा पहुंचे थे।
महिपतशाह नहीं गये।
इसके दो कारण
माने जाते हैं।
पहला यह कि
पहाड़ से आगरा
तक जाना तब
आसान नहीं था
और दूसरा उन्हें
मुगल शासन की
अधीनता स्वीकार नहीं थी।
कहा जाता है
कि शाहजहां इससे
चिढ़ गया था।
इसके अलावा किसी
ने मुगल शासकों
को बताया कि
गढ़वाल की राजधानी
श्रीनगर में सोने
की खदानें हैं।
इस बीच महिपतशाह
और उनके वीर
सेनापति भी नहीं
रहे। शाहजहां ने
इसका फायदा उठाकर
गढ़वाल पर आक्रमण
करने का फैसला
किया। उन्होंने अपने
एक सेनापति नजाबत
खान को यह
जिम्मेदारी सौंपी। निकोलो मानुची
ने अपनी किताब
में शाहजहां के
सेनापति या रानी
का जिक्र नहीं
किया है लेकिन
उन्होंने लिखा है
कि मुगल जनरल
30 हजार घुड़सवारों और पैदल
सेना के साथ
गढ़वाल की तरफ
कूच कर गया
था। गढ़वाल के
राजा (यानि रानी
कर्णावती) ने उन्हें
अपनी सीमा में
घुसने दिया लेकिन
जब वे वर्तमान
समय के लक्ष्मणझूला
से आगे बढ़े
तो उनके आगे
और पीछे जाने
के रास्ते रोक
दिये गये। गंगा
के किनारे और
पहाड़ी रास्तों से अनभिज्ञ
मुगल सैनिकों के
पास खाने की
सामग्री समाप्त होने लगी।
उनके लिये रसद
भेजने के सभी
रास्ते भी बंद
थे।
मुगल सेना कमजोर
पड़ने लगी और
ऐसे में सेनापति
ने गढ़वाल के
राजा के पास
संधि का संदेश
भेजा लेकिन उसे
ठुकरा दिया गया।
मुगल सेना की
स्थिति बदतर हो
गयी थी। रानी
चाहती तो उसके
सभी सैनिकों का
खत्म कर देती
लेकिन उन्होंने मुगलों
को सजा देने
का नायाब तरीका
निकाला। रानी ने
संदेश भिजवाया कि
वह सैनिकों को
जीवनदान देन सकती
है लेकिन इसके
लिये उन्हें अपनी
नाक कटवानी होगी।
सैनिकों को भी
लगा कि नाक
कट भी गयी
तो क्या जिंदगी
तो रहेगी। मुगल
सैनिकों के हथियार
छीन दिये गये
थे और आखिर
में उनके एक
एक करके नाक
काट दिये गये
थे। कहा जाता
है कि जिन
सैनिकों की नाक
काटी गयी उनमें
सेनापति नजाबत खान भी
शामिल था। वह
इससे काफी शर्मसार
था और उसने
मैदानों की तरफ
लौटते समय अपनी
जान दे दी
थी। उस समय
रानी कर्णावती की
सेना में एक
अधिकारी दोस्त बेग हुआ
करता था जिसने
मुगल सेना को
परास्त करने और
उसके सैनिकों को
नाक कटवाने की
कड़ी सजा दिलाने
में अहम भूमिका
निभायी थी। यह
1640 के आसपास की घटना
है।
कुछ इतिहासकार रानी कर्णावती
के बारे में
इस तरह से
बयां करते हैं
कि वह अपने
विरोधियों की नाक
कटवाकर उन्हें कड़ा दंड
देती थी। इनके
अनुसार कांगड़ा आर्मी के
कमांडर नजाबत खान की
अगुवाई वाली मुगल
सेना ने जब
दून घाटी और
चंडीघाटी (वर्तमान समय में
लक्ष्मणझूला) को अपने
कब्जे में कर
दिया तब रानी
कर्णावती ने उसके
पास संदेश भिजवाया
कि वह मुगल
शासक शाहजहां के
लिये जल्द ही
दस लाख रूपये
उपहार के रूप
में उसके पास
भेज देगी। नजाबत
खान लगभग एक
महीने तक पैसे
का इंतजार करता
रहा। इस बीच
गढ़वाल की सेना
को उसके सभी
रास्ते बंद करने
का मौका मिल
गया। मुगल सेना
के पास खाद्य
सामग्री की कमी
पड़ गयी और
इस बीच उसके
सैनिक एक अज्ञात
बुखार से पीड़ित
होने लगे। गढ़वाली
सेना ने पहले
ही सभी रास्ते
बंद कर दिये
थे और उन्होंने
मुगलों पर आक्रमण
कर दिया। रानी
के आदेश पर
सैनिकों के नाक
काट दिये गये।
नजाबत खान जंगलों
से होता हुआ
मुरादाबाद तक पहुंचा
था। कहा जाता
है कि शाहजहां
इस हार से
काफी शर्मसार हुआ
था। शाहजहां ने
बाद में अरीज
खान को गढ़वाल
पर हमले के
लिये भेजा था
लेकिन वह भी
दून घाटी से
आगे नहीं बढ़
पाया था। बाद
में शाहजहां के
बेटे औरंगजेब ने
भी गढ़वाल पर
हमले की नाकाम
कोशिश की थी।
यह थी गढ़वाल
की रानी कर्णावती
की कहानी जो
कुछ किस्सों और
इतिहासकारों विशेषकर विदेश के
इतिहासकारों की पुस्तकों
से जुटायी गयी
हो। इससे भी
इतर कुछ किस्से
हो सकते हैं।
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Also read कौन हैं रानी कर्णावती? here https://hi.letsdiskuss.com/who-is-rani-krnavati
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