राजपूत
वंश के गोत्र प्रवरादि आदि के बारे में सामन्य जानकारी।
राजपूत
वंशो के गोत्र प्रवरादि
राजपूत
वंश के गोत्र, शाखा, कुलदेविया
गौङ वंश के गोत्र-प्रवरादि
वंश – सूर्य वंश
गोत्र — भारद्वाज
प्रवर तीन
– भारद्वाज,बाईस्पत्य, अंगिरस
वेद – यजुर्वेद
शाखा – वाजसनेयि
सूत्र – पारस्कर
कुलदेवी – महाकाली
इष्टदेव –
रुद्रदेव
वॄक्ष – केला
गौड़ वंश
वंश- सूर्यवंश
गौत्र- भारद्वाज
प्रवर तीन- भारद्वाज, बाईस्पत्य, अंगिरस
वेद- यजुर्वेद
शाखा- वाजसनेयी
सूत्र- पारस्कर
कुलदेवी- महाकाली
इष्ट देव- रूद्रदेव
वृक्ष- केला
गृहदेवी- नारायणी माता
भैरव- गया-सुर
नदी- गिलखा
तालाब- गया-सागर
गढ़- पहला बंगाल, दुसरा गढ़ अजमेर
गुरू- वशिष्ठ
किले की देवी- महादुर्गा
ढाल- आशावरी
तलवार- रंगरूप
बन्दुक- संदाण
तोप- कट्कबिजली
कटार- रणवीर
छुरी- अस्पात
ढोल- जीतपाल
नंगारा- रणजीत
घाट- हरीद्वार
तीर्थ- द्वारिका
भाट- करणोत
चारण- मेहसन
ढोली- डोगव
बलाई- भाटियो
नाई- लिलडि़यो
गौड़ वंश
वंश- सूर्यवंश
गौत्र- भारद्वाज
प्रवर तीन- भारद्वाज, बाईस्पत्य, अंगिरस
वेद- यजुर्वेद
शाखा- वाजसनेयी
सूत्र- पारस्कर
कुलदेवी- महाकाली
इष्ट देव- रूद्रदेव
वृक्ष- केला
गृहदेवी- नारायणी माता
भैरव- गया-सुर
नदी- गिलखा
तालाब- गया-सागर
गढ़- पहला बंगाल, दुसरा गढ़ अजमेर
गुरू- वशिष्ठ
किले की देवी- महादुर्गा
ढाल- आशावरी
तलवार- रंगरूप
बन्दुक- संदाण
तोप- कट्कबिजली
कटार- रणवीर
छुरी- अस्पात
ढोल- जीतपाल
नंगारा- रणजीत
घाट- हरीद्वार
तीर्थ- द्वारिका
भाट- करणोत
चारण- मेहसन
ढोली- डोगव
बलाई- भाटियो
नाई- लिलडि़यो
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