रोहिला राजपूतो का गौरवशाली इतिहास
रोहिला राजपूतो का गौरवशाली इतिहास
गौरवशाली इतिहास के कुछ
स्वर्णाक्षर (रोहिला क्षत्रिय)
2. रोहिला साम्राज्य 25 ,000
वर्ग किमी 10 ,000 वर्गमील
में फैला हुआ
था ।
3. रोहिला, राजपूतो का
एक गोत्र , कबीला
(परिवार) या परिजन-
समूह है जो
कठेहर - रोहिलखण्ड के शासक
एंव संस्थापक थे
|मध्यकालीन भारत में
बहुत से राजपूत
लडाको को रोहिला
की उपाधि से
विभूषित किया गया.
उनके वंशज आज
भी रोहिला परिवारों
में पाए जाते
हैं ।
4. रोहिले- राजपूत प्राचीन
काल से ही
सीमा- प्रांत, मध्य
देश (गंगा- यमुना
का दोआब), पंजाब,
काश्मीर, गुजरात, राजस्थान, मध्य
प्रदेश में शासन
करते रहे हैं
। जबकि मुस्लिम-रोहिला साम्राज्य अठारहवी
शताब्दी में इस्लामिक
दबाव के पश्चात्
स्थापित हुआ. मुसलमानों
ने इसे उर्दू
में "रूहेलखण्ड" कहा ।
5. 1702 से 1720 ई तक
रोहिलखण्ड में
रोहिले राजपूतो का शासन
था. जिसकी राजधानी
बरेली थी ।
6. रोहिले राजपूतो के
महान शासक "राजा
इन्द्रगिरी" ने रोहिलखण्ड
की पश्चिमी सीमा
पर सहारनपुर में
एक किला बनवाया,जिसे "प्राचीन रोहिला
किला" कहा जाता
है । सन
1801 ई में रोहिलखण्ड
को अंग्रेजो ने
अपने अधिकार में
ले लिया था.
हिन्दू रोहिले-राजपुत्रो द्वारा
बनवाए गये इस
प्राचीन रोहिला किला को
1806 से 1857 के मध्य
कारागार में परिवर्तित
कर दिया गया
था । इसी
प्राचीन- रोहिला- किला में
आज सहारनपुर की
जिला- कारागार है
।
7. "सहारन" राजपूतो का
एक गोत्र है
जो रोहिले राजपूतो
में पाया जाता
है. यह सूर्य
वंश की एक
प्रशाखा है जो
राजा भरत के
पुत्र तक्षक के
वंशधरो से प्रचालित
हुई थी ।
8. फिरोज तुगलक के
आक्रमण के समय
"थानेसर" (वर्तमान में हरियाणा
में स्थित) का
राजा "सहारन" ही था ।
9. दिल्ली में गुलाम
वंश के समय
रोहिलखण्ड की राजधानी
"रामपुर" में राजा
रणवीर सिंह कठेहरिया
(काठी कोम, निकुम्भ
वंश, सूर्यवंश रावी
नदी के काठे
से विस्थापित कठगणों
के वंशधर) का
शासन था ।
इसी रोहिले राजा
रणवीर सिंह ने
तुगलक के सेनापति
नसीरुद्दीन चंगेज को हराया
था. 'खंड' क्षत्रिय
राजाओं से सम्बंधित
है, जैसे भरतखंड,
बुंदेलखंड, विन्धयेलखंड , रोहिलखंड,
कुमायुखंड, उत्तराखंड आदि ।
10. प्राचीन भारत की केवल
दो भाषाएँ संस्कृत
व प्राकृत (सरलीकृत
संस्कृत) थी ।
रोहिल प्राकृत और
खंड संस्कृत के
शब्द हैं जो
क्षत्रिय राजाओं के प्रमाण
हैं । इस्लामिक
नाम है दोलताबाद,
कुतुबाबाद, मुरादाबाद, जलालाबाद, हैदराबाद,
मुबारकबाद, फैजाबाद, आदि ।
11. रोहिले राजपूतो की
उपस्तिथि के प्रमाण
हैं । योधेय
गणराज्य के सिक्के,
गुजरात का (1445 वि ) ' का
शिलालेख (रोहिला मालदेव के
सम्बन्ध में), मध्यप्रदेश में
स्थित रोहिलखंड रामपुर
में राजा रणवीर
सिंह के किले
के खंडहर, रानी
तारादेवी सती का
मंदिर , पीलीभीत में राठौर
रोहिलो (महिचा- प्रशाखा) की
सतियों के सतियों
के मंदिर, सहारनपुर
का प्राचीन रोहिला
किला, मंडोर का
शिलालेख, " बड़ौत में
स्तिथ " राजा रणवीर
सिंह रोहिला मार्ग
"
नगरे नगरे
ग्रामै ग्रामै विलसन्तु
संस्कृतवाणी ।
सदने - सदने
जन - जन बदने
, जयतु चिरं कल्याणी
।।
जोधपुर का शिलालेख,
प्रतिहार शासक हरीशचंद्र
को मिली रोहिल्लाद्व्यंक
की उपाधि, कई
अन्य
राजपूतो के वंशो
को प्राप्त उपाधियाँ,
'पृथ्वीराज रासो', आल्हाखण्ड - काव्यव,
सभी राजपूत वंशो
में पाए
जाने वाले
प्रमुख गोत्र ।
अखिल भारतीय
क्षत्रिय महासभा भारत द्वारा
प्रकाशित पावन ग्रन्थ
क्षत्रिय वंशाणर्व (रोहिले क्षत्रियों
का
राज्य रोहिलखण्ड का पूर्व
नाम पांचाल व
मध्यप्रदेश), वर्तमान में अखिल
भारतीय क्षत्रिय महासभा से
अखिल भारतीय
रो. क्ष. वि.
परिषद को संबद्धता
प्राप्त होना, वर्तमान में
भी रोहिलखण्ड (संस्कृत
भाषा में)
क्षेत्र का नाम
यथावत बने रहना,
अंग्रेजो द्वारा भी उत्तर
रेलवे को "रोहिलखण्ड
- रेलवे" का नाम
देना जो
बरेली से देहरादून
तक सहारनपुर होते
हुए जाती थी,
वर्तमान में लाखो
की संख्या में
पाए जाने वाले
रोहिला-राजपूत, रोहिले-राजपूतों के सम्पूर्ण
भारत में फैले
हुए कई अन्य
संगठन अखिल भारतीय
स्तर
पर 'राजपूत
रत्न' रोहिला शिरोमणि
डा. कर्णवीर सिंह
द्वारा संगठित एक अखिल
भारतीय रोहिला
क्षत्रिय विकास परिषद
(सम्बद्ध अखिल भारतीय
क्षत्रिय महासभा) पंजीकरण संख्या
- 545, आदि।
12. पानीपत
की तीसरी लड़ाई
(रोहिला वार) में
रोहिले राजपूत- राजा गंगासहाय
राठौर (महेचा) के नेतृत्व
में
मराठों
की ओर
से अफगान आक्रान्ता
अहमदशाह अब्दाली व रोहिला
पठान नजीबदौला के
विरुद्ध लड़े व
वीरगति पाई ।
इस मराठा युद्ध
में लगभग एक
हजार चार सौ
रोहिले राजपूत वीरगति को
प्राप्त हुए ।
(1761-1774 ई .) (इतिहास -रोहिला-राजपूत)
13. प्रथम
स्वतंत्रता संग्राम 1857 में भी
रोहिले राजपूतों ने अपना
योगदान दिया, ग्वालियर के
किले में रानी
लक्ष्मीबाई को हजारों
की संख्या में
रोहिले राजपूत मिले, इस
महायज्ञ में स्त्री
पुरुष सभी ने
अपने गहने
धन
आदि एकत्र कर झाँसी
की रानी के
साथ अंग्रेजो के
विरुद्ध आवाज उठाने
के लिए सम्राट
बहादुरशाह-
जफर तक
पहुँचाए । अंग्रेजों
ने ढूँढ-ढूँढ
कर उन्हें काट
डाला जिससे रोहिले
राजपूतों ने अज्ञातवास
की
शरण ली।
14. राजपूतों
की हार के
प्रमुख कारण थे
हाथियों का प्रयोग,
सामंत प्रणाली व
आपसी मतभेद, ऊँचे
व
भागीदार कुल का
भेदभाव (छोटे व
बड़े की भावना)
आदि।
15. सम्वत
825 में बप्पा रावल चित्तौड़
से विधर्मियों को
खदेड़ता हुआ ईरान
तक गया। बप्पा
रावल से समर
सिंह तक
400 वर्ष होते हैं,
गह्लौतों का ही शासन
रहा। इनकी 24 शाखाएँ
हैं। जिनके 16 गोत्र
(बप्पा
रावल के
वंशधर) रोहिले राजपूतों में
पाए जाते हैं।
16. चितौड़
के राणा समर
सिंह (1193 ई.) की
रानी पटना की
राजकुमारी थी इसने
9 राजा, 1 रावत और
कुछ
रोहिले साथ लेकर
मौ. गोरी के
गुलाम कुतुबद्दीन का
आक्रमण रोका और
उसे ऐसी पराजय
दी कि कभी
उसने चितौड़
की ओर नही
देखा।
17. रोहिला
शब्द क्षेत्रजनित, गुणजनित
व 'मूल पुरुष'
नाम-जनित है।
यह गोत्र जाटों
में भी रूहेला,
रोहेला,
रूलिया, रूहेल , रूहिल,
रूहिलान नामों से पाया
जाता है।
18. रूहेला
गोत्र जाटों में
राजस्थान व उ.
प्र. में पाया
जाता है। रोहेला
गोत्र के जाट
जयपुर में बजरंग
बिहार
ओर ईनकम
टैक्स कालोनी टौंक
रोड में विद्यमान
है। झुनझुन, सीकर,
चुरू, अलवर, बाडमेर
में भी
रोहिला गोत्र के
जाट विद्यमान हैं
। उत्तर प्रदेश
के मुजफ्फरनगर जिले
में रोहेला गोत्र
के जाटों के
बारह
गाँव हैं।
महाराष्ट्र में रूहिलान
गोत्र के जाट
वर्धा में केसर
व खेड़ा गाँव
में विद्यमान हैं।
19. मुगल
सम्राट अकबर ने
भी राजपूत राजाओं
को विजय प्राप्त
करने के पश्चात्
रोहिला-उपाधि से
विभूषित किया था,
जैसे राव, रावत,
महारावल, राणा, महाराणा, रोहिल्ला,
रहकवाल आदि।
20. "रोहिला-राजपूत" समाज , क्षत्रियों का
वह परिवार है
जो सरल ह्रदयी,
परिश्रमी,राष्ट्रप्रेमी,स्वधर्मपरायण,
स्वाभिमानी व वर्तमान
में अधिकांश अज्ञातवास
के कारण साधनविहीन
है। 40 प्रतिशत कृषि कार्य
से,30
प्रतिशत श्रम के
सहारे व 30 प्रतिशत
व्यापार व लघु
उद्योगों के सहारे
जीवन यापन कर
रहे हैं। इनके
पूर्वजो ने हजारों
वर्षों तक अपनी
आन, मान, मर्यादा
की रक्षा के
लिए बलिदान दिए
हैं और अनेको
आक्रान्ताओं को रोके
रखने में अपना
सर्वस्व मिटाया है ।
गणराज्य व लोकतंत्रात्मक
व्यवस्था को
सजीव बनाये
रखने की भावना
के कारण वंश
परंपरा के विरुद्ध
रहे, करद राज्यों
में भी स्वतंत्रता
बनाये
रखी ।
कठेहर रोहिलखण्ड की
स्थापना से लेकर
सल्तनत काल की
उथल पुथल, मार
काट , दमन चक्र
तक लगभग
आठ सौ वर्ष
के शासन काल
के पश्चात् 1857 के
ग़दर के समय
तक रोहिले राजपूतों
ने
राष्ट्रहित में बलिदान
दिये हैं। क्रूर
काल के झंझावालों
से संघर्ष करते
हुए क्षत्रियों का
यह 'रोहिला परिवार'
बिखर गया
है, इस समाज
की पहचान के
लिए भी आज
स्पष्टीकरण देना पड़ता
है। कैसा दुर्भाग्य
है? यह
क्षत्रिय वर्ग का।
जो अपनी पहचान
को भी टटोलना
पड़ रहा है।
परन्तु समय के
चक्र में सब
कुछ सुरक्षित
है। इतिहास
के दर्पण में
थिरकते चित्र, बोलते हैं,
अतीत झाँकता है,
सच सोचता है
कि उसके होने
के
प्रमाण धुंधले-धुंधले
से क्यों हैं?
हे- क्षत्रिय तुम
धन्य हो, पहचानो
अपने प्रतिबिम्बों को'
-
"क्षत्रिय एकता का
बिगुल फूँक
सब धुंधला
धुंधला छंटने दो।
हो अखंड
भारत के राजपुत्र
खण्ड खण्ड
में न सबको
बंटने दो ।।"
21. रोहिलखण्ड
से विस्थापित इन
रोहिला परिवारों में राजपूत
परम्परा के कुछ
प्रमुख गोत्र इस प्रकार
पाए
जाते हैं
:-
1. रोहिला, रोहित, रोहिल,
रावल, द्रोहिया, रल्हन,
रूहिलान, रौतेला , रावत
2. यौधेय, योतिक, जोहिया,
झोझे, पेशावरी
3. पुण्डीर, पांडला, पंढेर,
पुन्ड़ेहार, पुंढीर, पुंडाया
4. चौहान, जैवर, जौडा,
चाहल, चावड़ा, खींची,
गोगद, गदाइया, सनावर,
क्लानियां, चिंगारा, चाहड बालसमंद,
चोहेल, चेहलान, बालदा, बछ्स
(वत्स), बछेर, चयद, झझोड,
चौपट, खुम्ब, जांघरा,
जंगारा, झांझड
5. निकुम्भ, कठेहरिया, कठौरा,
कठैत, कलुठान, कठपाल,
कठेडिया, कठड, काठी,
कठ, पालवार
6. महेचा, महेचराना,
रतनौता, बंसूठ जोली, जोलिए,
बांकटे, बाटूदा, थाथी, कपोलिया,
खोखर, अखनौरिया ,लोहमढ़े,
मसानिया
7. बुन्देला, उमट, ऊमटवाल
8. भारतवंशी, भारती, गनान
9. नाभावंशी,बटेरिया, बटवाल,
बरमटिया
10. परमार, जावडा, लखमरा,
मूसला, मौसिल, भौंसले, बसूक,
जंदडा, पछाड़, पंवारखा, ढेड,
मौन
11. तोमर, तंवर, मुदगल,
देहलीवाल, किशनलाल, सानयाल, सैन,
सनाढय
12. गहलौत, कूपट, पछाड़,
थापा, ग्रेवाल, कंकोटक,
गोद्देय, पापडा, नथैड़ा, नैपाली,
लाठिवाल, पानिशप, पिसोण्ड, चिरडवाल,
नवल, चरखवाल, साम्भा,
पातलेय, पातलीय, छन्द (चंड),
क्षुद्रक,(छिन्ड, इन्छड़, नौछड़क),
रज्जडवाल, बोहरा, जसावत, गौर,
मलक, मलिक, कोकचे,
काक
13. कछवाहा, कुशवाहा, कोकच्छ,
ततवाल, बलद, मछेर
14. भरोलिया, बरनवाल,
बरनपाल, बहारा
15. खुमाहड, अवन्ट, ऊँटवाल
16. सिकरवार, रहकवाल, रायकवार,
ममड, गोदे
17. सोलंकी, गिलानिया, भुन,
बुन, बघेला, ऊन,
(उनयारिया)
18. बडगूजर, सिकरवार, ममड़ा,
पुडिया
19. कश्यप, काशब, रावल,
रहकवाल
20. यदु, मेव,
छिकारा, तैतवाल, भैनिवाल, उन्हड़,
भाटटी बनाफरे, जादो,
बागड़ी, सिन्धु, कालड़ा, सारन,
छुरियापेड, लखमेरिया, चराड, जाखड़,
सेरावत, देसवाल, पूडिया
प्रमुख रोहिला क्षत्रिय शासक
1. अंगार सैन - गांधार (वैदिक काल)
2. अश्वकरण - ईसा पूर्व
326 (मश्कावती दुर्ग)
3. अजयराव - स्यालकोट (सौकंल
दुर्ग) ईसा पूर्व
326
4. प्रचेता - मलेच्छ संहारक
5. शाशिगुप्त - साइरस के
समकालीन
6. सुभाग सैन - मौर्य
साम्राज्य के समकालीन
7. राजाराम शाह - 929 वि.
रामपुर रोहिलखण्ड
8. बीजराज - रोहिलखण्ड
9. करण चन्द्र
- रोहिलखण्ड
10. विग्रह राज - रोहिलखण्ड
- गंगापार कर स्रुघ्न
जनपद (सुगनापुर) यमुना
तक विस्तार दसवीं
शताब्दी में सरसावा
में किले का
निर्माण पश्चिमी सीमा पर,
यमुना द्वारा ध्वस्त
टीले के रूप
में नकुड़ रोड
पर देखा जा
सकता है।
11. सावन्त सिंह - रोहिलखण्ड
12. जगमाल - रोहिलखण्ड
13. धिंगतराव - रोहिलखण्ड
14. गोंकुल सिंह - रोहिलखण्ड
15. महासहाय - रोहिलखण्ड
16. त्रिलोक चन्द - रोहिलखण्ड
17. रणवीर सिंह - रोहिलखण्ड
18. सुन्दर पाल - रोहिलखण्ड
19. नौरंग देव - रोहिलखण्ड
20. सूरत सिंह
- रोहिलखण्ड
21. हंसकरण रहकवाल - पृथ्वीराज
के सेनापति
22. मिथुन देव रायकवार
- ईसम सिंह पुण्डीर
के मित्र थाना
भवन शासक
23. सहकरण, विजयराव - उपरोक्त
24. राजा हतरा
- हिसार
25. जगत राय
- बरेली
26. मुकंदराज - बरेली 1567 ई.
27. बुधपाल - बदायुं
28. महीचंद राठौर - बदायुं
29. बांसदेव - बरेली
30. बरलदेव - बरेली
31. राजसिंह - बरेली
32. परमादित्य - बरेली
33. न्यादरचन्द - बरेली
34. राजा सहारन
- थानेश्वर
35. प्रताप राव खींची
(चौहान वंश) - गागरोन
36. राणा लक्ष्य
सिंह - सीकरी
37. रोहिला मालदेव - गुजरात
38. जबर सिंह
- सोनीपत
39. रामदयाल महेचराना - क्लामथ
40. गंगसहाय - महेचराना - क्लामथ
1761 ई.
41. राणा प्रताप
सिंह - कौराली (गंगोह) 1095 ई.
42. नानक चन्द
- अल्मोड़ा
43. राजा पूरणचन्द
- बुंदेलखंड
44. राजा हंस
ध्वज - हिसार व राजा
हरचंद
45. राजा बसंतपाल
- रोहिलखण्ड व्रतुसरदार, सामंत वृतपाल
1193 ई.
46. महान सिंह
बडगूजर - बागपत 1184 ई.
47. राजा यशकरण
- अंधली
48. गुणाचन्द - जयकरण - चरखी
- दादरी
49. राजा मोहनपाल
देव - करोली
50. राजारूप सैन - रोपड़
51. राजा महपाल
पंवार - जीन्द
52. राजा परपदेड
पुंडीर - लाहौर
53. राजा लखीराव
- स्यालकोट
54. राजा जाजा
जी तोमर - दिल्ली
55. खड़ग सिंह
- रोहिलखण्ड लौदी के
समकालीन
56. राजा हरि
सिंह - खिज्रखां के दमन
का शिकार हुआ
- कुमायुं की पहाड़ियों
में अज्ञातवास की
शरण ली
57. राजा इन्द्रगिरी
(रोहिलखण्ड) (इन्द्रसेन) - सहारनपुर में प्राचीन
रोहिला किला बनवाया
। रोहिला क्षत्रिय
वंश भास्कर लेखक
आर. आर. राजपूत
मुरसेन अलीगढ से प्रस्तुत
58. राजा बुद्ध
देव रोहिला - 1787 ई.,
सिंधिया व जयपुर
के कछवाहो के
खेड़ा व तुंगा
के मैदान में
हुए युद्ध का
प्रमुख पात्र । (राय
कुँवर देवेन्द्र सिंह
जी राजभाट, तुंगा
(राजस्थान)
रोहिल्ला उपाधि - शूरवीर, अदम्य
- साहसी विशेष युद्ध कला
में प्रवीण, उच्च
कुलीन सेनानायको, और
सामन्तों को उनके
गुणों के अनुरूप
क्षत्रिय वीरों को तदर्थ
उपाधि से विभूषित
किया जाता था
- जैसे - रावत - महारावत, राणा,
महाराणा, ठाकुर, नेगी, रावल,
रहकवाल, रोहिल्ला, समरलछन्द, लखमीर,(एक लाख
का नायक) आदि।
इसी आधार पर
उनके वंशज भी
आजतक राजपूतों के
सभी गोत्रों में
पाए जाते हैं।
"वभूव
रोहिल्लद्व्यड्कों वेद शास्त्रार्थ
पारग: । द्विज:
श्री हरि चन्द्राख्य
प्रजापति समो गुरू
: ।।2।।
( बाउक का जोधपुर
लेख )
- सन 837 ई. चैत्र
सुदि पंचमी - हिंदी
अर्थ - "वेद
शास्त्र में पारंगत
रोहिल्लाद्धि उपाधिधारी एक हरिश्चन्द्र नाम
का ब्राह्मण था"
जो प्रजापति के
समान था हुआ
।।6।।
( गुज्जर गौरव मासिक
पत्रिका - अंक 10, वर्ष ।।माह
जौलाई 1991 पृष्ठ - 13) (राजपुताने का इतिहास
पृष्ठ - 147) (इतिहास रोहिला - राजपूत
पृष्ठ - 23) (प्राचीन भारत का
इतिहास, राजपूत वंश, - कैलाश
- प्रकाशन लखनऊ सन
1970 ई. पृष्ठ - 104 -105 - )
रोहिल्लद्व्यड्क
रोहिल्लद्धि - अंक वाला
या उपाधि वाला
।
सर्वप्रथम प्रतिहार शासक द्विज
हरिश्चन्द्र को रोहिल्लद्धि
उपाधि प्राप्त हुई
। बाउक,प्रतिहार
शासक विप्र हरिश्चन्द्र
के पुत्र कवक
और श्रीमति पदमनी
का पुत्र था
वह बड़ा पराक्रमी
और नरसिंह वीर
था।
प्रतिहार एक पद
है, किसी विशेष
वर्ण का सूचक
नही है। विप्र
हरिश्चन्द्र प्रतिहार अपने बाहुबल
से मांडौर दुर्ग
की रक्षा करने
वाला था, अदम्य
साहस व अन्य
किसी विशेष रोहिला
शासक के प्रभावनुरूप
ही रोहिल्लद्व्यड्क उपाधि
को किसी आधार
के बिना कोई
भी व्यक्ति अपने
नाम के साथ
सम्बन्ध करने का
वैधानिक रूप में
अधिकारी नही हो
सकता।
उपरोक्त से स्पष्ट
है कि बहुत
प्राचीन काल से
ही गुणकर्म के
आधार पर क्षत्रिय
उपाधि "रोहिल्ला" प्रयुक्त । प्रदत्त
करने की वैधानिक
व्यवस्था थी। जिसे
हिन्दुआसूर्य - महाराजा पृथ्वीराज चौहान
ने भी यथावत
रखा। पृथ्वीराज चौहान
की सेना में
एक सौ रोहिल्ला
- राजपूत सेना नायक
थे । "पृथ्वीराज
रासौ" -
चहूँप्रान,
राठवर, जाति पुण्डीर
गुहिल्ला । बडगूजर
पामार, कुरभ, जागरा, रोहिल्ला
।। इस कवित्त
से स्पष्ट है
। कि - प्राचीन
- काल में रोहिला-
क्षत्रियों का स्थान
बहुत ऊँचा था।
रोहिला रोहिल्ल आदि शब्द
राजपुत्रों अथवा क्षत्रियों
के ही द्योतक
थे । इस
कवित्त के प्रमाणिकता
"आइने अकबरी", 'सुरजन चरिता' भी
सिद्ध करते हैं
। युद्ध में
कमानी की तरह
(रोह चढ़ाई करके)
शत्रु सेना को
छिन्न - भिन्न करने वाले
को रहकवाल, रावल,
रोहिल्ला, महाभट्ट कहा गया
है।
महाराज पृथ्वीराज चौहान की सेना में पांच गोत्रों के रावल थे -
1. रावल - रोहिला
2. रावल - सिन्धु
3. रावल - घिलौत (गहलौत)
4. रावल - काशव
या कश्यप
5. रावल - बलदया बल्द
मुग़ल बादशाह अकबर ने
भी बहादुरी की
रोहिल्ला उपाधि को यथावत
बनाए रखा जब
अकबर की सेना
दूसरे राज्यों
को जीत कर
आती थी तो
अकबर अपनी सेना
के सरदारों को,बहादुर जवानों बहादुरी
के पदक (ख़िताब,उपाधि) देता था।
एक बार जब
महाराणा मान सिंह
काबुल जीतकर वापिस
आए तो अकबर
ने उसके बाइस
राजपूत सरदारों को यह
ख़िताब दी (उपाधि
से सम्मानित किया)
1. बाई तेरा
हर निरकाला रावत
को - रावल जी
2. चौमकिंग सरनाथा को
- रावल
3. झंड्कारा कांड्कड को
- रोहिल्ला
4. रावत मन्चारा
- कांड्कड काम करन,
निरकादास रावत को
रावराज और रूहेलाल
को रोहिला
0 Comments:
It is our hope that by providing a stage for cultural, social, and professional interaction, we will help bridge a perceived gap between our native land and our new homelands. We also hope that this interaction within the community will allow us to come together as a group, and subsequently, contribute positively to the world around us.