यूपी में राजपूत वोट बैंक और सियासी समीकरण
यूपी में राजपूत वोट बैंक और सियासी समीकरण
यूपी में राजपूत वोट बैंक और सियासी समीकरण
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में
आगामी विधान सभा
चुनावों के लिए
सियासी समीकरण में तकरीबन
सभी राजनैतिक दल
जुट गये हैं।
एक तरफ जहां
बसपा को बड़ा
झटका स्वामी प्रसाद
मौर्या के रूप
में लगा है
तो दूसरी तरह
सपा में कौमी
एकता दल के
विलय को लेकर
यादव परिवार में
मतभेद खुलकर सामने
आये हैं।
मौर्या
की बगावत के
बाद मायावती बसपा
संभालने में जुटी
,यूपी में सवर्ण
वोटों पर भाजपा
की पैनी नजर
हैं, सवर्ण में
राजपूत वोटों के लिए
भाजपा और सपा
में जबरदस्त घमासान
मचा है। यूपी
में राजपूतों का
वोटों का समीकरण
नब्बे के दशक
में काफी अहम
था। वीर बहादुर
सि्ंह, विशंभर प्रताप सिंह,
राजनाथ सिंह ना
सिर्फ यूपी बल्कि
केंद्र में भी
राजूपत वोटों का प्रतिनिधित्व
करते आ रहे
हैं। यूपी में
अजगर यानि अहिर,
जाट, गुज्जर और
राजपूत की राजनीति
को काफी अहम
माना जाता था।
इस समीकरण की
शुरुआत महेंद्र सिंह टिकेट
ने की थी
जिसे बाद ममें
मुलायम सिंह यादव
ने मुअजगर के
रूप में आगे
बढ़ाया जिसमें मुसलमानों को
भी शामिल किया
गया। अखिलेश के
सख्त तेवर ने
आखिरकार रद्द किया
अंसारी की पार्टी
का विलय यूपी
की राजनीति में
जातियों का काफी
दबदबा रहता है।
यादव, कुर्मी, चमार,
सहित तमाम जातियां
अहम भूमिका निभाती
आयी। हालांक इन
जातियों के उद्भव
की वजह से
राजपूतों की महत्ता
थोड़ी कम हुई।
लेकिन यूपी मे
एक बार फिर
से सवर्ण जाति
को सियासत की
मुख्य धारा में
लाने का काम
भाजपा ने किया।
जिसमें मुख्य रूप से
राजनाथ सिंह, योगी आदित्यनाथ,
संगीत सोम, सहित
तमाम राजपूत चेहरों
को यूपी में
भाजपा ने अहम
स्थान दिया। लेकिन
भाजपा के इतर
सपा में भी
अमर सिंह व
राजा भैया राजपूत
वोटों के प्रमुख
अगुवा रहे हैं।
एक तरफ जहां
सपा इन चेहरों
के दम पर
यूपी में राजपूत
वोटों को अपनी
ओर करने की
योजना बना रही
है तो दूसरी
तरफ भाजपा राजनाथ
सिंह को मुख्यमंत्री
पद का दावेदार
घोषित कर राजपूतों
को अपनी पार्टी
की ओर मोड़
सकती है। राजनाथ
सिंह को सबसे
बड़ी चुनौती अमर
सिंह से मिलेगी,
वह अपने बयानो
और स्वभाव को
लेकर अक्सर मीडिया
में चर्चा का
विषय रहते हैं।
ऐसे में सपा
के लिए अमर
सिंह की एक
बार फिर से
पार्टी मे वापसी
काफी फायदेमंद साबित
हो सकती है।
रघुराज प्रताप सिंह
उर्फ राजा भैया
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