इस इलाके में चलता है इस राजा का कानून
इस इलाके में चलता है इस राजा का कानून
सुर्खियों में रघुराज: जानिए दबंग राजा की दिलचस्प बातें
रघुराज प्रताप सिंह उर्फ़ ‘राजा भैया |
देश की आजादी के बाद भी उत्तर प्रदेश के इस इलाके में चलता है इस राजा का कानून। इस राजा के बोले गए शब्द यहाँ पत्थर की लकीर हो जाती है। जी हाँ हम बात कर रहे है रघुराज प्रताप सिंह उर्फ़ ‘राजा भैया’ की। सपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया अक्सर अपने बेबाक बयानों और हरकतों को लेकर चर्चा में रहते हैं। रघुराज प्रताप सिंह के कुंडा में कई सौ एकड़ में फैली उनकी रियासत में आलीशान हाथी-घोड़े बँधे रहते थे। इसी कड़ी में हम आपको राजा भैया से जुडी अनसुनी बातें बताने जा रहे है।
रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया की बेंती कोठी के पीछे 600 एकड़ के तालाब से कई तरह के किस्से जुड़े हैं। लोगों के बीच धारणा थी कि राजा भैया ने इस तालाब में घड़ियाल पाल रखे थे। वे अपने दुश्मनों को मारकर उसमें फेंक देते थे। हालांकि, राजा भैया इस लोगों का मानसिक दिवालियापन बताते हैं।
1- रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया का जन्म 31 अक्टूबर, 1967 को प्रतापगढ़ के भदरी रियासत में हुआ है.
2- उनके पिता का नाम उदय प्रताप सिंह और माता मंजुल राजे है. मंजुल राजे भी एक शाही परिवार की है.
3- रघुराज प्रताप सिंह को राजा भैया और तूफान सिंह के नाम से भी जाना जाता है.
4- राजा भैया को घुड़सवारी का बहुत शौक है. एक बार घोड़े से गिरने से उनकी दो पसलियां टूट गईं.
5- राजा भैया बुलेट, जिप्सी के साथ ही हेलीकॉप्टर की सवारी का शौक रखते हैं.
6-1993 में हुए विधानसभा चुनाव से उन्होंने राजनीति में कदम रखा था. तब से वह लगातार विधायक बने हुए हैं.
7- मंदिर आंदोलन के दौर में मुलायम ने उनका विरोध किया था. उनपर दंगों में भूमिका निभाने का आरोप था.
8- यूपी में राजा भैया ठाकुरों और ब्राह्मणों की विरोधी राजनीति की एक धुरी बन चुके हैं.
9- दबंग राजा को अपने पिता से डर लगता था. बचपन में वह उनसे कभी आंख भी नहीं मिला पाते थे.
10- उनके पास करीब 200 करोड़ से ज्यादा चल-अचल संपत्ति बताई जाती है. इसमें पैतृक संपत्ति भी शामिल है.
यूपी में आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए सियासी सरगर्मियां तेज हो गई हैं. चुनावी गणित के माहिर राजनेता हवा का रुख भांपते हुए अभी से अपनी स्थिति मजबूत करने में लग गए हैं. इसी कड़ी में सपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया एक बार फिर चर्चा में हैं. सीएम अखिलेश यादव पर अप्रत्यक्ष रूप से निशाना साधने के बाद उनके बीजेपी में शामिल होने के कयासों के बीच राजनीतिक गलियारे में हलचल मच गई है.
महज 24 साल की उम्र में अपना राजनीतिक सफर शुरू करने वाले राजा भैया ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर अपना चुनाव जीता था. अगले बार जब वे चुनाव लड़ रहे थे, तब उनके खिलाफ प्रचार करने मुख्यमंत्री कल्याण सिंह कुंडा पहुंचे. कल्याण सिंह ने वहां कहा था- 'गुंडा विहीन कुंडा करौं, ध्वज उठाय दोउ हाथ.' लेकिन बीजेपी उम्मीदवार राजा भैया से चुनाव हार गया.
कुंडा को 'गुंडामुक्त' कराने का नारा देने वाले कल्याण सिंह ने बाद में राजा भैया को अपने ही मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया. मायावती ने जब कल्याण सरकार से समर्थन वापस लिया था, उस समय राजा भैया ने सरकार बचाने में कल्याण की बहुत मदद की थी. बाद में मायावती की सरकार बनी. उन्होंने अपने शासनकाल में राजा भैया पर पोटा कानून के तहत केस दर्ज करके जेल भेज दिया.
मंत्रिमंडल से देना पड़ा था इस्तीफा
2012 में सपा की सरकार बनने के बाद वो उनके एक बार फिर मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया. लेकिन प्रतापगढ़ के कुंडा में डिप्टी एसपी जिया उल-हक की हत्या के सिलसिले में नाम आने के बाद रघुराज प्रताप सिंह को अखिलेश मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा. सीबीआई जांच के दौरान कथित क्लिनचिट मिलने के बाद उनको आठ महीने बाद फिर से मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया.
तालाब में घड़ियाल पालने का आरोप
रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया की बेंती कोठी के पीछे 600 एकड़ के तालाब से कई तरह के किस्से जुड़े हैं. लोगों के बीच धारणा थी कि राजा भैया ने इस तालाब में घड़ियाल पाल रखे थे. वे अपने दुश्मनों को मारकर उसमें फेंक देते थे. हालांकि, राजा भैया इस लोगों का मानसिक दिवालियापन बताते हैं. 2003 में मायावती सरकार ने भदरी में उनके पिता के महल और उनकी कोठी पर छापा मरवाया था.
Raja Bhaya |
कुंडा के तलाब में मिला था कंकाल
बेंती के तालाब की खुदाई में एक नरकंकाल मिला था. बताया जाता है कि वह कंकाल कुंडा क्षेत्र के ही नरसिंहगढ़ गांव के संतोष मिश्र का था. संतोष का कसूर ये था कि उसका स्कूटर राजा भैया की जीप से टकरा गया था और कथित तौर पर उनके लोग उसे उठाकर ले गए और इतना मारा कि वह मर गया. बाद में उसके शव को बेंती तालाब के पास दफना दिया गया.
अखिलेश यादव ने राजा भैया को अपने मंत्रिमंडल में जगह दी थी
उदय प्रताप सिंह ख़ुद दून स्कूल में पढ़े थे लेकिन उन्होंने राजा भैया को औपचारिक शिक्षा दिए जाने पर एतराज़ था. उनका मानना था कि शिक्षा हासिल करने से राजा भैया बुज़दिल हो जाएँगे.
पर राजा भैया की माँ ने बिना ज़ाहिर किए उन्हें प्राथमिक शिक्षा दिलवाई.
राजा भैया ने सिर्फ़ 24 वर्ष की उम्र में राजनीति में हाथ आज़माया और आज़ाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव जीत लिया.
तीन साल बाद उन्होंने फिर चुनाव लड़ा और मुख्यमंत्री कल्याण सिंह उनके ख़िलाफ़ प्रचार करने कुंडा पहुँचे. मगर भारतीय जनता पार्टी का आधिकारिक उम्मीदवार राजा भैया से हार गया.
चमत्कार तो तब हुआ जब कुंडा को “गुंडामुक्त” कराने का दम भरने वाले कल्याण सिंह ने कुछ ही समय में राजा भैया को अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया.
मायावती ने जब कल्याण सिंह सरकार से समर्थन वापिस लिया था तब राजा भैया ने सरकार बचाने में कल्याण सिंह को भरपूर मदद दी.
लंबी और महँगी कारों में चलने वाले इस नौजवान की उत्तर प्रदेश की राजनीति में अचानक चर्चा होने लगी. और ये चर्चा अब तक जारी है.
मायावती के शासन में उनपर पोटा क़ानून के तहत मामला दर्ज करके जेल भेज दिया गया था. लेकिन समाजवादी पार्टी के जीतते ही वो फिर उत्तर प्रदेश की राजनीति के केंद्र में आ गए.
कई बार मुश्किल में पड़ने के बावजूद उत्तर प्रदेश की राजनीति में राजा भैया किसी न किसी तरह अपनी जगह बना ही लेते हैं. इसलिए इस इस्तीफ़े को राजा भैया के राजनीतिक कैरियर का अंत नहीं माना जा सकता.
राजा भैया के हाथी घोड़े और सामंती ठाठ-बाट
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रधुराज प्रताप सिंह कुंडा वाले अपने महल में सामंती ठाठ बाट से रहते हैं.
सोलह साल पहले उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने प्रतापगढ़ ज़िले के कुंडा क़स्बे में हुंकार भरी थी – गुंडा विहीन कुंडा करौं, ध्वज उठाय दोउ हाथ.
कल्याण सिंह उसके बाद से राजनीतिक हिचकोले खाते रहे हैं पर जिस आदमी को उन्होंने 1996 में समूल नष्ट करने का संकल्प लिया था वो अब फिर सुर्ख़ियों में है.
राज्य के एक पुलिस अधिकारी ज़िया उल-हक़ की हत्या के सिलसिले में नाम आने के बाद रघुराज प्रताप सिंह उर्फ़ राजा भैया उर्फ़ तूफ़ान सिंह ने अखिलेश यादव मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा दे दिया है.
रघुराज प्रताप सिंह के राजनीतिक करियर की शुरुआत के दिनों में मैं उनसे मिलने कुंडा वाले उनके महल पहुँचा जहाँ उनके कई सौ एकड़ में फैली उनकी रियासत में आलीशान हाथी-घोड़े बँधे रहते थे.
विवाद की वजह मेरा कुंडली: राजा भैया
अपनी जिप्सी में मुझे वो अपना फ़ार्म दिखाने ले गए. रास्ते में जिप्सी रोककर उन्होंने मुझसे उनकी पसलियाँ छूने को कहा. मैं थोड़ा अचकचाया पर जब मैंने हाथ बढ़ाकर पसलियाँ छुईं तो पाया कि दो पसलियाँ टूटी हुई थीं.
राजा भैया ने कहा, “घुड़सवारी का शौक है हमें और घोड़े से गिरने से ही ये पसलियाँ टूटीं.”
राजा भैया का न्याय
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राजा भैया पर कई आपराधिक मुकदमे चल चुके हैं
उस दौर में हर सुबह राजा भैया अपने महल के बाहर दालान में दरबार लगाते थे.गाँव के मर्द, औरत और बच्चे अपनी शिकायतें और झगड़े लेकर अदालत की बजाए उनके दरबार में पहुँचते थे जहां राजा भैया तुरंत “न्याय” कर देते थे.
उनके महल के बाहर कमर तक झुके हाथ जोड़े लोगों की क़तार लगी रहती थी.
पंद्रह साल पहले कुंडा थाने के रिकॉर्डों में राजा भैया और उनके पिता उदय प्रताप सिंह के ख़िलाफ़ धोखाधड़ी से लेकर हत्या के कई मामले दर्ज थे और उनका नाम इलाक़े के “हिस्ट्री शीटरों” में शामिल था.
उनके पिता के बारे में पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज है कि वो 20 सदस्यों वाला अपराधी गिरोह के सरगना हैं. दस्तावेज़ के मुताबिक़ उदय प्रताप सिंह ख़तरनाक हथियारों से ख़ुद को सुसज्जित करना पसंद करते हैं और आज के इस आज़ादी के युग में अपने समाज-विरोधी विचारों के आधार पर “अलग राज्य” स्थापित करना चाहते हैं.
उनके पिता के बारे में पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज है कि वो 20 सदस्यों वाला अपराधी गिरोह के सरगना हैं. दस्तावेज़ के मुताबिक़ उदय प्रताप सिंह ख़तरनाक हथियारों से ख़ुद को सुसज्जित करना पसंद करते हैं और आज के इस आज़ादी के युग में अपने समाज-विरोधी विचारों के आधार पर “अलग राज्य” स्थापित करना चाहते हैं.
उदय प्रताप सिंह भी कई विरोधाभासों को साधते रहे हैं. उनसे मुझे मिलाने ख़ुद राजा भैया ले गए लेकिन उनके महल के बाहर काफ़ी दूर ही उन्होंने अपनी गाड़ी का इंजन बंद कर दिया.
राजा भैया ने मुझे बताया,"पिताजी पर्यावरणवादी हैं और उनके सामने गाड़ी का इंजन ऑन नहीं रखा जा सकता. महल के अंदर से ख़ुद उनकी गाड़ी स्टार्ट करके बाहर नहीं लाई जाती बल्कि उसे खींचकर लाया जाता है और बाहर स्टार्ट किया जाता है."
विवादों से राजा भैया का नाता है पुराना
प्रतापगढ़ के कुंडा में सीओ के पद पर तैनात रहे पुलिस उपाधीक्षक जिया उल हक की हत्या की साजिश करने के आरोपों से घिरे रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया की अपराध में संलिप्तता कोई पहली बार उजागर नहीं हुई है. कई अपराधों में शामिल रहे राजा भैया ने समाजवादी पार्टी (सपा) के शासनकाल में हमेशा रौद्र रूप दिखाया है.
अभी तक मायावती ही इकलौती ऐसी मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने न सिर्फ राजा भैया को जेल में डाला, बल्कि उन पर आतंकवाद निरोधक कानून (पोटा) भी लगाया.
गिरफ्तार करने की हिम्मत नहीं?
सीओ हत्याकांड में नाम आने के बाद खाद्य मंत्री के पद से राजा भैया का इस्तीफा तो ले लिया गया, लेकिन अखिलेश यादव सरकार उनकी गिरफ्तारी करने की हिम्मत नहीं दिखा पा रही है.
खुद सपा के कई नेता दबी जुबान कह रहे हैं कि राजा भैया के खिलाफ कड़ी कारवाई होनी चाहिए, लेकिन सियासी रसूख और पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव से निकटता के कारण फिलहाल राजा भैया की गिरफ्तारी मुश्किल लग रही है.
राजा भैया को बचा रही है सपा सरकार?
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के प्रदेश प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक कहते हैं कि जब राजा भैया के खिलाफ सीओ की हत्या की साजिश का मुकदमा दर्ज हो गया तो उनकी गिरफ्तारी क्यों नहीं हो रही है? इस मामले में अखिलेश सरकार के रवैये से साफ है कि वह राजा भैया को बचाना चाहती है.
कुंडा क्षेत्र से लगातार 5 बार विधायक
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राजा भैया कुंडा विधानसभा क्षेत्र से लगातार पांच बार से विधायक हैं. राजा भैया 1993 और 1996 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) समर्थित, तो 2002, 2007 और 2012 के चुनाव में समाजवादी पार्टी (सपा) समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में निर्वाचित हुए. बीते वर्ष विधानसभा चुनाव में सपा को पूर्ण बहुमत मिलने के बावजूद निर्दलीय विधायक के रूप में जीते राजा भैया को अखिलेश सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया.
कई सरकारों में रह चुके हैं मंत्री
राजा भैया के सियासी रसूख का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह बीजेपी की कल्याण सिंह सरकार, राम प्रकाश गुप्ता सरकार और राजनाथ सिंह सरकार के अलावा सपर की मुलायम सिंह सरकार में भी मंत्री बनाए गए थे.
राजा भैया का पुराना आपराधिक रिकॉर्ड
राजा भैया का लंबा आपराधिक इतिहास रहा है और विवादों से उनका पुराना नाता है. राजा भैया पर उनके घर पर छापा मारने वाले पुलिस उपाधीक्षक राम शिरोमणि पांडे की हत्या करवाने का आरोप है. पांडे की संदेहास्पद परिस्थिति में एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) अभी भी इस मामले की जांच कर रही है. तमाम अपराधों में सिलिप्तता के बावजूद कोई सरकार किन्हीं कारणों से उन पर कार्रवाई की हिम्मत नहीं दिखा पाई. मायावती ही ऐसी मुख्यमंत्री थीं जिन्होंने राजा भैया को जेल की सलाखों के पीछे भेजा.
मायावती ने डाला था सलाखों के पीछे
साल 2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावाती ने राजा भैया को जेल के अंदर भेजने के बाद उन पर पोटा भी लगा दिया. साल 2010 में पंचायत चुनाव के दौरान कुंडा हुई हिंसा में एक उम्मीदवार को जान से मारने के प्रयास के आरोप में मुख्यमंत्री मायावती ने एक बार फिर उन्हें जेल में डलवाया. करीब एक साल तक राजा भैया जेल में बंद रहे.
कुंडा (उत्तर प्रदेश). डीएसपी जिया उल हक की मौत मामले की जांच कर रही सीबीआई ने गांव के लोगों से इस केस में गवाह बनने की अपील की है। कुंडा में कैंप कर रही सीबीआई की 10 सदस्यीय टीम ने प्रेस रिलीज जारी कर गांव वालों को भरोसा दिया है कि यदि वो गवाही देंगे तो उन्हें कोई तंग नहीं करेगा। सीबीआई के अधिकारियों ने हेल्पलाइन नंबर भी जारी किया है।
सीबीआई की टीम हथिगवां और कुंडा की पुलिस से कई बार पूछताछ कर चुकी है। अब एक-दो दिन में पूर्व मंत्री रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया से भी पूछताछ हो सकती है। राजा भैया की लखनऊ में मौजूदगी के मोबाइल काल डिटेल और वीडियो फुटेज समेत साक्ष्य जुटाए जा रहे हैं।
बीते दो मार्च को कुंडा के बलीपुर गांव के प्रधान नन्हें यादव की उस समय गोली मारकर हत्या कर दी गई थी जब वह चौराहे पर किसी काम से आए थे। बाद में पुलिस और ग्रामीणों में हुई हिंसक झड़प में प्रधान का छोटा भाई सुरेश और सीओ कुंडा जिया उल हक की भी हत्या हुई थी। प्रधान और सीओ को गोली कैसे लगी, इस बात को लेकर अभी भी सस्पेंस बना हुआ है।
मारे गए प्रधान नन्हें यादव का बड़ा बेटा योगेश गायब घटना की रात से ही है, कहीं भी उसका पता नहीं चल रहा है। परिवार के लोग भी उसके बारे में कुछ नहीं बता पा रहे हैं। योगेश के साथ अनहोनी की आशंका प्रधान के परिवार के लोगों को सता रही है। यही नहीं घटना के दूसरे दिन पुलिस ने जिन दो लोगों को गांव से उठाया था, उनका भी कोई पता नहीं चल रहा है।
लखनऊ.उत्तर प्रदेशकी पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने बुधवार को राजा भैया की गिरफ्तारी की मांग की। उनका कहना है कि अगर राजा भैया को गिरफ्तार नहीं किया जाता है तो सीओ मर्डर केसकी जांच प्रभावित होगी। कुंडा पहुंची फोरेंसिक टीम को एक भी सबूत नहीं मिला है। गोलियों के निशान तक खुरच दिए गए हैं। गांव में हाल यह है कि लोग मीडिया को अपना नाम तक नहीं बता रहे हैं और पूछने पर कह रहे हैं कि वो पढ़े लिखे तो हैं नहीं, अपना नाम भी नहीं जानते।
जिस बलीपुर गांव में बीते शनिवार तीन कत्लहुए, वहां ब्राह्मण, क्षत्रिय, यादव, पटेल और पासी बिरादरी के तकरीबन 250 परिवार रहते हैं। ज्यादातर घरों से पुरुष घर छोड़ कर जा चुके हैं। जिस घर के सामने डिप्टी एसपी जियाउल और प्रधान नन्हें यादव के भाई सुरेश का कत्ल हुआ, वहां रहने वाली महिला से जब मीडिया ने पूछा कि उस दिन क्या हुआ था तो उसका कहना था कि वह तो दवा खाकर सो रही थी। जब पूछा गया कि गोली चलने पर भी नींद नहीं टूटी तो उसका कहना था कि उसे कुछ सुनाई नहीं पड़ा। यह पूछने पर कि घर के बाकी सदस्य कहां गए, महिला का कहना था कि कई दिन पहले सब रिश्तेदारी में गए और वापस भी कई दिन बाद आएंगे। जब महिला से उसका नाम पूछा गया तो महिला का कहना था कि वह तो अनपढ़ है। वह अपना नाम-वाम नहीं जानती।
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