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राजपूतो पर लांछन लगाने वालों को जवाब

राजपूतो पर लांछन लगाने वालों को जवाब

जोधा मानसिंहः ओर जयचन्द का नाम लेकर राजपूतो पर लांछन लगाने वालों को जवाब

एक और झूठा प्रचार वामपंथी और मुस्लिम इतिहासकारो ने फैलाया है , की राजपूत राजाओ ने मुगलो से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर लिए।  यह बिलकुल झूठ और बेमानीपूर्ण कपट प्रचार  हिन्दू विरोधी मानसिकता के लोगो ने किया है।  यह मानना एकदम बेहूदगी है की मधपि  लम्पट , कामुक और विदेशी व्यक्ति के हाथों राजपूत अपनी कन्यायें देंगे ,  जो राजपूत कन्या अपने मान और कुलगौरव की रक्षा के लिए जीवित ही अग्नि की ज्वाला में होम हो जाती थी , जो मरते समय तक शाके  कर मरना पसंद करती थी , उन राजपूतो ने अपनी कन्याएं मुगलो के हरम मे  भेजी हो , ऐसी कल्पना करना ही मूर्खता की पराकष्ठा है।

  इसमें एक उदाहरण आमेर के राजा भारमल का दिया जाता है  की उसने अपनी बेटी मुगलो को ब्याही थी। आज गहरे शोध के बाद इतिहासकार इस निष्कर्ष पहुंचे है , की राजा भारमल  के तो जोधाबाई नाम की कोई बेटी ही नहीं थी , अकबर के  संपत्ति शरीफुद्दीन ने आमेर पर अनेक आक्रमण किये थे , एक आक्रमण में उसने राजा भारमल के तीन भतीजे भी पकड़ लिए थे , उनके नाम  थे ,  जगन्नाथ , राजसिंह और खंगर।  इतिहासकार पी. एन  ओक साहब  लिखते है , इन  तीनो राजकुमारों को बंधक बनाकर पहले किसी निर्जन स्थान लाया गया , और उनकी क्रूर हत्या की धमकी दी।  राजा भारमल के सम्मुख उनका सर्वनाश  उपस्थित था , असहाय अवस्था में उन्होंने संधि की पेशकश की।  क्रूर अकबर ने इन तीनो  राजकुमारों के बदले  एक निर्दोष , असहाय राजकुमारी के समर्पण की मांग रख दी , राजा भारमल ने दरबारियों और उसके सगे सम्बन्धियों से विचार विमर्श किया , क्यों की उस समय अकबर के पास विशाल सेना थी , इसलिए सबने मिलकर एक योजना के तहत एक पारसी दासी को अकबर को   सौंप दिया।  इसका मकबरा अकबर के मकबरे के पास मर्थरिस्ट ईसाई चर्च के अखाड़े में बना है , जो इस बात का प्रमाण है  , की वह राजपूत लड़की नहीं थी।  मुस्लिम बादशाहो की चाल यह होती थी , की आक्रमण के समय उनके हाथ जो भी स्त्री लगती , उसका अपहरण कर अपने हरम में ले जाते , और उन्हें राजपूत कन्याओ की संज्ञा देते।  इसी प्रकार ओरंगजेब भी अपनी एक ईसाई बेगम को बड़े गर्व से उदयपुरिया रानी कहता था।  इस प्रकार राजपूत -मुगल वैवाहिक संबंधों के जितने भी उदाहरण दिए जाते है, वे सभी प्रपंच मात्र कपोल कल्पित ओर निराधार है ।

इस मुगलकाल में राजपूतो ने रक्त की शुद्धता बनाये रखी , इसके कई उदाहरण है , मुग़ल शाशको ने जब अपनी बेटियां राजपूतो को देनी चाही, तब भी रजपूतो  ने उनकी कन्या नहीं ली , कई बार हिन्दू सेनापति , मुस्लिम कन्याओ को राजा के लिए उठाकर ले आये थे , किन्तु राजाओ ने उन्हें ससम्मान वापस लौटा दिया था।  महाराज शिवाजी ने अपने सेनापति आवाजी सोनदेव द्वारा लायी गयी , कल्याण के सूबेदार अहमद की पुत्रवधु को ससम्मान लौटा दिया था।  महाराणा प्रताप ने अपने पुत्र अमरसिंह द्वारा बंदी बनायी गयी अब्दुल रहीम खानेखाना की बेगमो से क्षमा मांगते हुए उन्हें वापस लौटा दिया था।  महाराणा  प्रताप ने अपने पुत्र अमरसिंह द्वारा बन्दी बनाई गई अब्दुल रहीम खानेखाना की बेगमो से क्षमा मांगते हुए उन्हें वापिस लौटा दिया था । ओरंगजेब अपनी बहन रोशन आरा को शिवाजी को देना चाहता था , परन्तु शिवाजी ने यह अस्वीकार कर दिया था।  ओरंगजेब की एक बेगम दुर्गादास  के साथ जाना चाहती थी , ओरंगजेब की एक पुत्री शरीफ़ुनिसा  जो दुर्गादास के सरक्षण में अजित सिंह से विवाह करना चाहती थी , किन्तु दुर्गादास राठौड़  ने इससे मना कर दिया था।

अल्लाउद्दीन की बेटी फिरोजा भी वीरमदेव सोनगरा  से विवाह करना चाहती थी , किन्तु वीरमदेव ने राजपूत रक्त का महत्व् जान उस विवाह से मना कर  दिया था।  इस बात से क्रुद्ध हो अल्लाउद्दीन खिलजी ने जालोर पर आक्रमण कर दिया था , और वीरमदेव वीरगति को प्राप्त हुआ।  वीरमदेव का कटा सर जब ओरंगजेब सामने पेश किया गया , और जब उसकी बेटी भी वीरमदेव के दर्शन करने आयी थी , तो वीरमदेव के कटे सर ने भी मुँह फेर लिया था।  इस तरह राजपूतो ने जीते जी तो क्या , मरने के बाद  भी रक्त की शुद्धता का  ख्याल रखा।

इतिहास की एक बड़ी भूल और है , कुछ लोग राजा  मानसिंह  को  गद्दार ठहराते है , यह सब राजपूती इतिहास  से ईर्ष्या करने वाले लोग है , सनातन धर्म की रक्षा के लिए जयपुर आमेर के राजा मानसिंह  अकबर के साथ बने रहे क्यों की उस समय तक मुसलमानो के आक्रमण सहते सहते , हिन्दुओ की शक्ति क्षीण हो चुकी थी, और इसे फिर से मजबूत करना था , इसके लिए सबसे जरुरी था , मुगलो और पठानों को कभी आपस में एक ना होने दिया जाएँ।  और मानसिंह  इसमें सफल भी रहे , जयपुर  हो या राजस्थान के उन सभी प्रदेशो का इस्लामीकरण सबसे ज़्यादा कम वहां हुआ है , जहाँ मानसिंह  शाशक थे।  जयपुर शहर  में आज भी सबसे कम मस्जिदे है , और जो थोड़ी बहुत मस्जिदे है , वह भी राजा मानसिंह के समय के बाद बनी है । मानसिंह  के समय की एक आध मस्जिद भी जयपुर में मिल पाना मुश्किल है।  राजा मानसिंह  ने अकबर की सेना का उपयोग  , कंधार  , काबुल , को कुचलने के लिए ली , क्यों  की भारत का सारा धन लूटकर यहीं लेजाया गया था, और भारत से लुटा गया धन वापस लेकर आये।
इतिहास में एक और सबसे बड़ा अन्याय महाराज जयचंद के साथ  हुआ है।  पृथ्वीराज रासो के आधार पर जयचंद्र को देशद्रोही ठहराया गया है ,किन्तु आधुनिक इतिहासकार जयचंद को गद्दार की जगह एक महान दानी राजा माना  है।  जयचंद के समय के अब तक १४ दानपत्र मिल चुके है।  पृथ्वीराज- चंदेल युद्ध में जयचंद ने चन्देलों की सहयता की थी , हो सकता है , इसी से चिढ़कर चौहानों ने पृथ्वीराज रासो में उसे गद्दार लिख दिया हो??  या फिर योजनाबद्ध तरीके  से इतिहास को  कलंकित करने का यह षड्यंत्र हुआ हो। 
जयचन्द_कौन_थे--

त्यक्तवा देहं सं शुद्धात्मा चन्द्रकान्त्यां सुतोभवत।।
जयचन्द्र इतिख्यातो बाहुशाली जितेंद्रिय ।।

भविष्यपुराण का इस श्लोक का अर्थ है कि जयचन्द्र एक शुद्ध आत्मा और प्रतापी ओर जितेंद्रिय शासक था। 
उसका छोटा भाई रत्नभानु था, जिसने गोड़ , मरु तथा बंगाल देशों में विजय प्राप्त की । ( यह भी भविष्यपुराण से लिया गया है - भविष्य पुराण - प्रतिसर्ग पर्व ३.५.१-४)
जब मैने भविष्यपुराण की यह घटना पढ़ी, तो मव समझ गया, की पृथ्वीराज चौहान और जयचन्द क् वास्तविक बैर क्या था ? जयचन्द की मरुभूमि पर भी विजय का उल्लेख है , इसका अर्थ साफ है, की जयचन्द भी पृथ्वीराज जितने ही प्रतापी राजा थे, ओर इनका आपसी विवाद केवल दिल्ली को लेकर नही, बल्कि पूरे भारत को लेकर ही था । दोनो ही भारत सम्राट बनना चाहते थे, ओर इसके लिए दोनो मेयुद्ध भी अवश्यभावी था  । शायद पृथ्वीराज की म्रत्यु के कारण जयचन्द- पृथ्वीराज युद्ध टल गया, नही तो संभवतः चन्देल युद्ध के बाद एक ओर महाविनाश भारत देख लेता ।

जयचन्द एक महान शाशक था, उतना ही महान, जितने महान पृथ्वीराज चौहान । दोनो ही युद्धभूमि मे वीरगति को प्राप्त हुए । दोनो ही आन बान शान के लिए अपनी माटी ओर कुर्बान हुए। 
दरअसल जयचन्द को लेकर भ्रंतिया जानबूझकर फैलाई गई है । पृथ्वीराज रासो म् मुगलो द्वारा भारी छेड़छाड़ की गई है, रही shi कसर अंग्रेजो ओर वामियो ने पूरी कर दी। 
रासो में तैमूर, चंगेज खान, मेवाड़ के रावल रतनसिंह-पदमावती जौहर,ख़िलजी जैसे बाद की सदियों में जन्म लेने वाले चरित्रों और घटनाओ के नाम/प्रसंग आ गए,जबकि उनका जन्म ही पृथ्वीराज चौहान के सैंकड़ो वर्ष बाद हुआ था।
रासों में लिखी काव्य की भाषा में फ़ारसी,तुर्की के बहुत से ऐसे शब्द थे जो बहुत बाद में भारतवर्ष में मुस्लिम शासन काल में प्रचलित हुए।
रासो के अनुसार मेवाड़ के रावल समरसिंह को पृथ्वीराज चौहान का बहनोई बताया गया है और उन्हें तराईन के युद्ध में लड़ता दिखाया गया है
जबकि मेवाड़ के रावल समरसिंह का जन्म ही पृथ्वीराज की मृत्यु के 80 वर्ष बाद हुआ था!!
अनंगपाल तोमर प्रथम का शासन काल सन् 736-754 ईस्वी के बीच था जबकि अनंगपाल तोमर द्वित्य का काल सन् 1051-1081 ईस्वी था,इनके अतिरिक्त कोई अनंगपाल हुए ही नही,
फिर दिल्ली नरेश अनंगपाल पृथ्वीराज चौहान के नाना कैसे हो सकते हैं क्योंकि उनके जन्म लेने के लगभग 80-85 वर्ष पूर्व ही अनंगपाल जी स्वर्गवासी हो गए थे ।

ओर तो ओर पृथ्वीराज रासो मे तो मुहम्मद गौरी को सिकंदर महान का बेटा बताया गया है।
जयचन्द्र ओर पृथ्वीराज क् विवाद था महत्वाकाक्षा का । ना तो पृथ्वीराज युद्धप्रिय थे, ओर ना जयचन्द्र ने गौरी को बुलाया था।  बल्कि जयचन्द्र ने तो खुद भयंकर मलेछ संघार किया था। 
जयचन्द्र एक पराक्रमी शासक था, उसकी सेना हमेशा विचरण किया करती थी।  जब वह किसी देश पर चढ़ाई करता था, तो राजा और सेना देश छोड़कर भाग जाते थे । रंभामंजरी पढिये, उसमे साफ वर्णन है, की किस तरह जयचन्द ने मुसलमानों का घोर संघार करवाया था । भला जो आदमी मुसलमानों से इतनी घृणा करें, वह गौरी को क्यो बुलायेगा ? 

लौ वास्तविक इतिहास तो यही है ।  और बाकी जो है, सब झूठ ।

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