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Param Vir Chakra Major Shaitan Singh Full Story in Hindi

Param Vir Chakra Major Shaitan Singh Full Story in Hindi

मेजर शैतान सिंह जीवन परिचय


 15 अगस्त देश के आजादी का दिन। जिसे पूरा भारत बड़े जोश खरोश से एक पावन दिन के तौर पर मना रहा है, लेकिन आप हम जानतें है की सीमा पर सेना का हर जवान अपनी धरती माँ के जान देने और जान लेने से कभी नही चुकता है। शायद यही कारण है की दुश्मन भारत पर नजर उठाने से भी कांपते हैं। आज हम को भारत माता के कुछ ऐसे सपूतों के बारें में बतातें है जिनके बारें में जानकर आप का सीना गर्व से चौड़ा हो जाएगा। कैसे उन्होंने दुश्मनो के छक्के छुड़ा दिए थे।भारत में कम ही लोग हैं जो 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध को याद करना पसंद करते हैं. वजह साफ है… 1962 के युद्ध के घाव इतने गहरे हैं कि कोई भी देशवासी उसको कुरेदना नहीं चाहता. यहां तक की भारतीय सेना भी उस युद्ध के बारे में ज्यादा बात करती नहीं दिखती. लेकिन ऐसा नहीं है कि 1962 युद्ध ने सिर्फ हमें घाव ही दिए हैं. उस युद्ध ने हमें ये भी सिखाया है कि विषम परिस्थितियों में भी भारतीय सैनिक बहादुरी से ना केवल लड़ना जानते हैं, अपनी जान तक देश की सीमाओं की रक्षा के लिए न्यौछावर नहीं करते हैं, बल्कि दुश्मन के दांत भी खट्टे करना जानते हैं.

राजस्थान की धरती में एक से एक वीर योद्धा हुए है. यहाँ की मिटटी में ही कुछ खास बात है कि यहाँ के लड़ाके देश की रक्षा के लिए अपनी जान देने से पहले एक पल भी नहीं सोचते.
ऐसे ही एक महान सैनिक की कथा हम आज आपको बताने जा रहे है.
सेना में बहादुरी के सर्वोच्च पुरूस्कार से सम्मानित भारत माता के इस लाल ने युद्ध के मैदान में ऐसा साहस और शौर्य दिखाया के दुश्मन के छक्के छूट गए.शैतान सिंह भाटी का जन्म राजस्थान के जोधपुर में 1924 में एक राजपूत परिवार में हुआ था.
शैतान सिंह का पूरा नाम शैतान सिंह भाटी था। उनके पिता श्री हेमसिंह जी भाटी भी सेना में लेफ्टिनेंट कर्नलरहे थे।राजपूत लोगों की बहादुरी से तो पूरा देश ही वाकिफ है, उनकी बहादुरी और देशभक्ति को देखते हुए ही भारतीय सेना में एक पूरी रेजिमेंट इनके नाम से है.

राजपुताना रेजिमेंट को सेना की सबसे बहादुर टुकड़ी माना जाता है.













ये घटना 1962 के समय भारत चीन युद्ध के समय की है. मेजर शैतान सिंह भाटी कुमायूं रेजिमेंट में अपनी टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे थे. चीन की सेना पूरे दम खम के साथ हमला कर रही थी. विषम परिस्थितियों और संख्या में कम होने के बाद भी मेजर शैतान सिंह दुश्मन सेना से लोहा ले रहे थे.

 शैतान सिंह ने 1 अगस्त 1949 को कुमायूं में कदम रखा था। चीन का वह युद्ध जिसमें मेजर शैतान सिंह ने अपना पराक्रम दिखाया, 1962 में आक्साई चिन सीमा विवाद से शुरू हुआ था। चुशूल सेक्टर सीमा से बस पन्द्रह मील दूर था और वह क्षेत्र लद्दाख की सुरक्षा की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण था। चीन का युद्ध भारत के लिए बहुत से सन्दर्भो में एक नया पाठ था। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू विश्व शान्ति के पक्षधर थे और उनकी नजर विकास कार्यों पर अधिक थी। आवासउद्योग आदि क्षेत्रों पर देश की योजनाएँ केन्द्रित थी। चीन की विस्तारवादी नीति और कार्यवाही भले ही भारत से छिपी नहीं थीफिर भी हम इस बात की कल्पना भी नहीं कर पा रहे थे कि चीन हमारे लिए एक हमलावर देश सिद्ध होगा। भले ही चीन ने जिस तरह से तिब्बत पर अपना कब्जा जमाया हुआ था और दलाई लामा को भारत ने शरण दी थीयह एक साफ कारण बनता था।



अपनी टुकड़ी के सैनिकों की हिम्मत ना टूटे इसके लिए वो खुद एक पोस्ट से दुसरे पोस्ट पर जाकर  अपने सैनिकों की हौंसला अफजाई कर रहे थे.
चीन के हज़ार से भी ज्यादा सैनिकों  के मुकाबले में भारत के कुछ  सौ ही सैनिक थे. लेकिन भारत का एक एक सैनिक चीनी सैनिकों पर भारी पड़ रहा था.

अपने सैनिकों का उत्साह बढ़ाते हुए मेजर बुरी तरह से गोलियों से छलनी हो चुके थे फिर भी उन्होंने अपनी चौकी नहीं छोड़ी. वो अपने अंत समय तक सैनिकों का हौंसला बढ़ाते रहे.

सैनिकों ने चीनी सैनिकों के साथ बिना हथियारों के भी युद्ध किया. मेजर शैतान सिंह के नेत्रित्व में कुमायूं रेजिमेंट की उस टुकड़ी ने तीनों पोस्ट को चीनी सैनिकों से बचा लिया.

बुरी तरह घायल मेजर ने अपनी टुकड़ी के बचे कुचे सैनिकों को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया और चीनी सैनिकों से लड़ते लड़ते शहीद हो गए.


अगले दिन चीनी सेना ने युद्ध विराम की घोषणा कर दी. इस भिडंत में चीन के करीब 1000 सैनिक मारे गए और मेजर शैतान सिंह की 123 सैनिकों की टुकड़ी में से भी अधिकतर सैनिक शहीद हो गए थे.

जब युद्धविराम हुआ तो मेजर शैतान सिंह के मृत शरीर की खोज की गयी. उनका मृत शरीर ठीक उसी जगह पाया गया जहाँ वो आखिर समय चीनी सेना से लड़ रहे थे. उनके हाथ में अभी भी बन्दुक थी और चेहरे पर तेज़ था.

युद्ध की समाप्ति के बाद मातृभूमि के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले मेजर शैतान सिंह को सेना में बहादुरी के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र दिया गया. मेजर शैतान सिंह को ये सम्मान मरणोपरांत दिया गया.


उन्हें दिए गए सम्मान पत्र में लिखा था कि युद्ध क्षेत्र में शैतान सिंह ने अद्भुत वीरता का प्रदर्शन किया और आखिरी सैनिक के बचने तक उन्होंने दुश्मन सेना से लोहा लिया और अपनी पोस्ट की रक्षा की. ऐसा अद्भुत शौर्य युद्ध के मैदान में कम ही देखने को मिलता है.


इस युद्ध में मेजर द्वारा भेजे गये दोनों संदेशवाहकों द्वारा बताई गई घटना पर सरकार ने तब भरोसा किया और शव खोजने को तैयार हुई जब चीनी सेना ने अपनी एक विज्ञप्ति में कबुल किया कि उसे सबसे ज्यादा जनहानि रेजांगला दर्रे पर हुई। मेजर शैतान सिंह की 120 सैनिकों वाली छोटी सी सैन्य टुकड़ी को मौत के घाट उतारने हेतु चीनी सेना को अपने 2000 सैनिकों में से 1800 सैनिकों की बलि देनी पड़ी। कहा जाता है कि मातृभूमि की रक्षा के लिए भारतीय सैनिकों के अदम्य साहस और बलिदान को देख चीनी सैनिकों ने जाते समय सम्मान के रूप में जमीन पर अपनी राइफलें उल्टी गाडने के बाद उन पर अपनी टोपियां रख दी थी। इस तरह भारतीय सैनिकों को शत्रु सैनिकों से सर्वोच्च सम्मान प्राप्त हुआ था। शवों की बरामदगी के बाद उनका यथास्थान पर सैन्य सम्मान के साथ दाहसंस्कार कर मेजर शैतान सिंह भाटी को अपने इस अदम्य साहस और अप्रत्याशित वीरता के लिये भारत सरकार ने सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया।
मेजर शैतान सिंह की इस वीरता को देखते हुए उन्हें मरणोंप्रांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था हम सब लता मंगेशकर मेरे वतन के लोगों जिस गीत को गाकर अमर कर दिया है वो मेजर शैतान सिंह और उनके साथियों की वीरता से प्रभावित होकर गीतकार प्रदीप ने लिखा था। गीतकार प्रदीप द्वारा लिखा गया देशप्रेम से ओतप्रोत गाना जिसे लता मंगेशकर ने गाकर अमर कर दिया था दरअसल वो रेज़ागला युद्ध को ध्यान में ही रखकर शायद रचा गया था.
गीत के बोल कुछ यूं हैं, “….थी खून से लथपथ काया, फिर भी बंदूक उठाके दस-दस को एक एक ने मारा, फिर गिर गये होश गंवा के. जब अंत समय आया तो कह गये के अब मरते हैं खुश रहना देश के प्यारों अब हम तो सफर करते हैं. क्या लोग थे वो दीवाने क्या लोग थे वे अभिमानी जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी….”







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